प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 298

प्रेम योग -वियोगी हरि

Prev.png

शान्त भाव

वह आत्मानन्द का सुंदर सरोवर है। उसमें भगवान् के चरम कमल सदा विकसित रहते हैं। वियोग की रात्रि वहाँ कभी होती ही नहीं। सदैव प्रेम का प्रकाश रहता है। न वहाँ भय है, न रोग। न दुख है, न शोक। प्यारे के प्रेमरस की सदा ही वर्षा हुआ करती है। अमृत की नगर उसी सरोवर से निकली है। सो चकई! तू तो उसी सरोवर को चल! धन्य वह सरोवर!

जेहि सर सुभग मुक्ति मुक्ताफल, सुकृत अमृत रस पीजै।
सो सर छाड़ि कुबुद्धि बिहंगम! यहाँ कहा रहि कीजै।।

आत्मा शांति ही जीवन का एक मात्र साध्य है। केवल कर्म अथवा केवल ज्ञान के द्वारा इस ‘स्वराज्य सुख’ की प्राप्ति संभव नहीं। प्रेममूलक सक्रिय ज्ञान के द्वारा ही हमें आत्मशान्ति का लाभ होगा। शान्तरसात्मक प्रेम ही बिछुड़ी हुई आत्मा को परमात्मा से मिलायगा। असत् से सत् की ओर हमें शान्तरति ही ले जायेगी। सो, भैया! अब होशियार हो जाओ। कुछ खबर है, कबके पड़े सो रहे हो? जागो, जागो, अपने खाक धन की चोरी न करा लो, प्यारे राहगीर!

राही! सोवत इत कितै, चोर लगैं चहुँ पास।
तो निज धन के लेन कों गिनैं नींद की स्वास।।
गिनैं नोंद की स्वास, बास बसि तेरे डेरे।
लिए जात बनि मीत माल ये साँझ सबेरे।।
बरनै ‘दीन दयाल’, न चीन्हत है तू ताही।
जाग, जाग, रे, जाग, इतै कित सोवत, राही।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः