प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 28

प्रेम योग -वियोगी हरि

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एकांकी प्रेम

तेरे बन्दे हम हैं खुदा जानता है,
खुदा जाने तू हमको क्या जानता है।- मीर

यह मैं मानता हूँ कि तेरा दिल मुझसे मिलता नहीं है, फिर भी मैं तुझे प्यार करता हूँ। क्या करूँ, बिना प्रेम किये जी मानता ही नहीं। प्रेम करना मेरा स्वभाव बन गया है। मुझ पर यह अपराध आरोपित किया जा रहा है कि तुम क्यों प्रेम करते हो। इस पर मैं क्या सफाई दूँ-

ठहरे हैं हम तु मुजरिम टुक प्यार करके तुमको,
तुमसे भी कोई पूछे, तुम क्यों हुए पियारे! - मीर

कैसे बरी होऊँ इस इल्जाम से! क्या करूं, क्या न करूँ। प्रेम करना मैं कैसे छोड़ दूँ, भाई।

कौन विधघि कीजै, कैसे जीजै सो बताइ दीजै,
हा हा, हो बिसासी, दूर भाजत, तरु भजौं।- आनन्दघन

तू मुझसे हमेशा दूर भागता रहे और मैं तुझे चाहता रहूँ- बस, यही मैं तुझसे माँगता हूँ। मैं तुझसे तेरे प्रेम को नहीं मांगता, मैं तो तुझसे तुझको माँगता हूँ-

हर सुबह उठके तुझसे माँगूँ हूँ मैं तुझी को,
तेरे सिवाय मेरा कुछ मुद्दआ नहीं है। - मीर

इस भाव में ही मेरे जीवन का अर्थ छिपा है। तू ही बता मैं अपने जीवन को निरर्थक कैसे कर दूँ। प्रेम करने की आदत कैसे छोड़ दूँ यह तो मेरा सहज स्वभाव है। जो बन गया सो बन गया। तू चाहे जो समझे, मैं तो यही समझ बैठा हूँ कि-

तेरे सिवाय मेरा कुछ मुद्दआ नहीं है।

सो, प्यारे! यह जिंदगी जिस ढर्रे पर चल रही है, उसी पर चलने दे। तू क्यों मेरी फिक्र करता है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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