प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 248

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य

आज कृष्ण सखा उद्धव व्रज वासियों को उनके प्राण प्रिय गोपाल का प्रेम संदेश सुनाने व्रज में आये हैं। वृद्ध नन्दबाबा की दशा क्या कहें। दिन रात बेचारे ‘कन्हैया, कन्हैया!’ की रट लगाये रहते हैं। नेत्रों की ज्योति रोते रोते मंद हो चली है। माता यशोदा की अवस्था तो और भी शोचनीय है। आज उद्धव को देखकर उनके प्राण पक्षी मानो फिर पिंजड़े में लौट आये। आज मेरा बड़ा भाग्य, जो उस भाग्यवान् का दर्शन कर रही हूँ, जिसकी आँखों में मेरे दुलारे गोपाल की छबि खचित हो रही है। स्नेह कातरा यशोदा उद्धव के सिर पर हाथ फेरने लगी। उद्धव भी मैया के पैरों से लिपट कर रोने लगे। प्रकृति ने उस समय एक बार फिर व्रज भूमि पर वात्सल्य रस की पुनीत धारा बहा दी। कुशल क्षेम पूछना भला वह भोली भाली ग्वालिनी क्या जाने। बोली, भैया ऊधो!

मेरे प्यारे सकुशल सुखी और सानन्द तो हैं?
कोई चिन्ता मालिन उनको तो वहीं है बनाती,
ऊधो, छाती वदन पर है भ्लानता भी नहीं तो?
हो जाती हैं हृदयतल में तो नहीं वेदनाएँ?
संकोची है परम अति ही, धीर है लाल मेरा,
लज्जा होती अमित उसको माँगने में सदा थी;
जैसे लेके सरुचि सुत को अंक में मैं खिलाती,
हा! वैसे ही नित खिला कौन वामा सकेगी?
जो पाती हूँ कुँवर मुख के जोग मैं भोग प्यारा,
तो होती हैं हृदयतल में वेदनाएँ बड़ी ही;

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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