प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्यकुछ बी हो, मैं तो अपने कन्हैया को वहाँ न भेजूँगी- पर, विलपती कलपती मैया को वह निठुर कन्हैया मूर्छित करके मथुरा चला ही गया। बड़ा जिद्दी है, माना ही नहीं। कुछ दिनों बाद कृष्ण को वहाँ छोड़कर नन्दबाबा अपने गाँव को लौट आये। माता को अपने प्यारे पूत को देखने की अब तक जो कुछ थोड़ी बहुत आशा थी, सो उसका बी तार अब टूट गया। स्नेह कातर हो बेचारी विलाप करने लगी। पतिदेव! बताओ, मेरे उस आँखों के तारे प्यारे लाल को तुम कहाँ छोड़ आये? अपने प्राण प्रिय, गोपाल को छोड़कर तुम यहाँ तक जीवित कैसे आये! कहाँ है वह- प्रियपति, वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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