प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 246

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य

कुछ बी हो, मैं तो अपने कन्हैया को वहाँ न भेजूँगी-
बारे बड़े उमड़े सब जैबेकों हौं न तुम्हें पठवौ, बलिहारी।
मेरे तौ जीवन ‘देव’ यही धन या ब्रज पाई मैं भीख तिहारी।।
जानै न रीति अथाइन की, नित गाइन में बन भूमि निहारी।
याहि कोऊ पहचानै कहा कछु जानै कहा मेरो कुंज बिहारी।।

पर, विलपती कलपती मैया को वह निठुर कन्हैया मूर्छित करके मथुरा चला ही गया। बड़ा जिद्दी है, माना ही नहीं। कुछ दिनों बाद कृष्ण को वहाँ छोड़कर नन्दबाबा अपने गाँव को लौट आये। माता को अपने प्यारे पूत को देखने की अब तक जो कुछ थोड़ी बहुत आशा थी, सो उसका बी तार अब टूट गया। स्नेह कातर हो बेचारी विलाप करने लगी। पतिदेव! बताओ, मेरे उस आँखों के तारे प्यारे लाल को तुम कहाँ छोड़ आये? अपने प्राण प्रिय, गोपाल को छोड़कर तुम यहाँ तक जीवित कैसे आये! कहाँ है वह-

प्रियपति, वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है?
दुख जल निधि डूबी का सहारा कहाँ है?
लख मुख जिसका मैं आजलौं जी सकी हूँ,
वह हृदय दुलारा नैन तारा कहाँ है?
पल पल जिसके मैं पंथ को देखती थी,
निशि दिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती,
उर पर जिसके है सोहती मुक्तमाला,
वह बद नलिनी से नैनवाला कहाँ है?
सहकर कितने ही कष्ट औ संकटों को
बहु भजन कराके, पूजके निर्जरों को,
वह सुवन मिला है जो मुझे यत्न द्वारा,
प्रियतम! वह मेरा कृष्ण प्यारा कहाँ है? - हरिऔध

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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