प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम और विरहदेख्यो एक बारहूँ न नैन भरि तुम्हें, यातें कौन आँखें खुली रह जायँगी? अरे, वही विरागिनी आँखें, जो विरह का कमण्डलु लिये दिन रात तुम्हारे दर्शन की मधुकरी भीख द्वार द्वार माँगा करती हैं- बिरह कमंडलु कर लिये, बैरागी दो नैन। हाँ, वियोगिनी की वही विरागिनी योगिनी आँखें, जो- बरुनी बघम्बर में गूदरी पलक दोऊ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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