प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्यआज कृष्ण सखा उद्धव व्रज वासियों को उनके प्राण प्रिय गोपाल का प्रेम संदेश सुनाने व्रज में आये हैं। वृद्ध नन्दबाबा की दशा क्या कहें। दिन रात बेचारे ‘कन्हैया, कन्हैया!’ की रट लगाये रहते हैं। नेत्रों की ज्योति रोते रोते मंद हो चली है। माता यशोदा की अवस्था तो और भी शोचनीय है। आज उद्धव को देखकर उनके प्राण पक्षी मानो फिर पिंजड़े में लौट आये। आज मेरा बड़ा भाग्य, जो उस भाग्यवान् का दर्शन कर रही हूँ, जिसकी आँखों में मेरे दुलारे गोपाल की छबि खचित हो रही है। स्नेह कातरा यशोदा उद्धव के सिर पर हाथ फेरने लगी। उद्धव भी मैया के पैरों से लिपट कर रोने लगे। प्रकृति ने उस समय एक बार फिर व्रज भूमि पर वात्सल्य रस की पुनीत धारा बहा दी। कुशल क्षेम पूछना भला वह भोली भाली ग्वालिनी क्या जाने। बोली, भैया ऊधो! मेरे प्यारे सकुशल सुखी और सानन्द तो हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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