विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजपंचम-पुष्प5. ‘न किश्चिदपि चिन्तयेत्’ का तात्त्विक अभिप्राय-‘भक्ति रसार्णवः’ हमारा ग्रन्थ है उसमें हमने इसका उत्तर दिया है, परन्तु बहुत मधुर उत्तर दिया है।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दृष्टव्य 227 वस्तुतस्तु
- ↑ भागवत 2.1.19
- ↑ भागवत 11.14.43
- ↑ श्रीविग्रह है
- ↑ वैसे
- ↑ प्रकाशमय
- ↑ कृष्णमेनवेहि त्वामात्मानम खिलात्मनाम्।
जगद्धिताय सोअप्यत्र देहीवाभाति मायया।।(भागवत 10.14.55)
(इन श्रीकृष्ण को ही तुम सब आत्माओं का आत्मा समझो। जगत के कल्याण के लिये ही योगमाया का आश्रय लेकर वे यहाँ देहधारी के समान जान पड़ते हैं।)
त्वं ब्रह्म परमं व्योम पुरुषः प्रकृते परः। अवतीर्णोअसि भगवन् स्वेच्छापात्तपृथग्वपुः।।(भागवत 11.11.28)
(भगवन! आप प्रकृति से परे पुरुषोत्तम एवं चिदाकाश स्वरूप ब्रह्म हैं। फिर भी आपने लीला के लिये स्वेच्छा से ही यह अलग शरीर धारण करके अवतार लिया है।)
ब्राह्मे मुहुर्त उत्थाय वायुपस्पृश्य माधवः। दध्यौ प्रसन्नकरण आत्मानं तमसः परम्।।(भागवत 10.70-4)
(भगवान श्रीकृष्ण प्रतिदिन ब्राह्ममुहुर्त में ही उठ जाते और हाथ-मुँह धोकर अपने मायातीत आत्मस्वरूप का ध्यान करने लगते। उस समय रोम-रोम आनन्द से खिल उठता था।)
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