श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
47. वंश-विस्तार
देवताओं को ब्रह्मा जी ने श्रीहरि के अवतार की सूचना के समय ही अपने-अपने अंशों से पृथ्वी पर अवतार लेने का आदेश दे दिया था। उसके अनुसार जैसे महाराज पाण्डु के पुत्रों के रूप में धर्म, वायु, इन्द्र तथा अश्विनीकुमारों के अंश से पांडव उत्पन्न हुए, वैसे ही कुछ अन्य देवताओं तथा देवाङ्गनाओं ने भी विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया। यदुवंश में ही अधिकांश देवता अवतीर्ण हुए। श्रीकृष्णचन्द्र का सम्बन्ध प्राप्त करने का यह सुयोग मिला था उन्हें। ये देवांश थे। यदुवंशी और श्रीबलराम-कृष्ण के संरक्षण में पले। इनका बल-पराक्रम, वैभव, सौन्दर्य, सौष्ठव, विद्या-बुद्धि सब लोकोत्तर होनी ही थी। श्रीकृष्णचन्द्र के संबंध के लोभ से उनकी सेवा-सहायता के लिए जो आये थे उन्हें प्रयोजन पूरा होने पर लौट भी जाना ही था। इस लौटने का निमित्त कुछ तो बनता ही। यह यदुवंश का विस्तार धरा पर देवताओं के प्रादुर्भाव का ही विस्तार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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