श्रीद्वारकाधीश के उद्गार

श्रीद्वारकाधीश के उद्गार


दिन रैन चैन मन है न सुधि पाय ऊधौ,
जसुमति मैया मेरे काज दुख पावै है।
अति सकुचाय नंद बाबा ढिग जाय बूझै,
साँवरो सलोने स्याम मेरो कब आवै है।
गुंजै भरि अँजुरी सहेजै, चुनै मोरपंख,
मुरली को चूमै, जल लोचन चुवावै है।
धेनु धूरि बेला धाय द्वार पैं अधीर भई,
दूरि लौं निहारैं पंथ, पथिक बतावै है।[1]

कुमारी अम्बिका सिंह


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 326 |

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः