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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
48. अघासुर के पूर्वजन्म का वृत्तान्त; अघासुर के वध पर देववर्ग के द्वारा श्रीकृष्ण का अभिनन्दन
मुनि की बात मिथ्या होने की ही नहीं थी, सत्य होकर ही रही। अस्तु, जब श्रीकृष्णचन्द्र अघासुर के मुख से बाहर निकल आये, फिर तो देववर्ग के आनन्द का क्या कहना है! अपना इतना महान कार्य करने वाले अघ जैसे दैत्य का विनाश कर अभयदान देने वाले के प्रति उन अन्तरिक्ष-वासियों का हृदय न्योछावर हो गया। उनके अन्तर का भाव-प्रवाह विभिन्न रूपों में व्यक्त होने लगा। आनन्द विह्वल हुए देववृन्द ने नन्दनकानन के अतिशय सुरभित कुसुमों की अंजलि भर-भरकर अजस्त्र सुमन-वृष्टि आरम्भ की। अप्सराएँ छम-छम करती नृत्य करने लगीं। गन्धर्वों के सुमधुर कण्ठ की खरलहरी, विद्याधरों के वाद्ययन्त्र की मनोहारिणी झंकृति सर्वत्र परिव्याप्त हो उठी। विप्रकुल का भक्तिपूरित स्तवन, भगवत्पार्षदों का ‘जय-जय’ निनाद गगन के कण-कण को मुखरित करने लगा। जिनके पास जो वस्तु थी, जो कला थी, उसकी भेंट समर्पित कर वे श्रीकृष्णचन्द्र का अभिनन्दन करने लगे-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।12।34)
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