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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
46. वन-भोजन-लीला का उपक्रम, वयस्य गोप-बालकों के द्वारा श्रीकृष्ण का श्रृंगार तथा श्रीकृष्ण के साथ उनकी यथेच्छ क्रीड़ा
यह तो उषा आयी है, अंशुमाली अभी भी क्षितिज के उस पार ही हैं। किंतु कमलनयन श्रीकृष्णचन्द्र आज इसी समय अपने-आप जग उठे हैं, जगकर जननी यशोदा को अपने मन की एक बात बता रहे हैं- ‘री मैया! देख, आज यहाँ नहीं, आज तो एक परम सुन्दर वन में जाकर वहाँ ही भोजन करने की मेरी रुचि हुई है।’-
अपने नीलमणि का ऐसा प्रस्ताव जननी सहज में स्वीकार कर लें, यह भी कभी सम्भव है? जननी को तो अपने पुत्र की यह अभिलाषा नितान्त अनीतिपूर्ण प्रतीत हुई और वे बड़े वेग से सिर हिलाकर तथा ‘नहीं-नहीं, यह तो होने की ही नहीं।’- मुख से भी स्पष्ट कहकर अपना निर्णय सुना देती हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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