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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
12. श्रीकृष्ण की मनोहर बाललीलाएँ
निर्मल चन्द्रज्योत्स्ना से उद्भासित नन्दप्रांगण में व्रजपुन्ध्रियों के तालबन्ध पर श्रीकृष्णचन्द्र नृत्य कर रहे हैं-
‘व्रजेशदुलारे! अपनी बाल्यचेष्टा से विमोहित करने वाले! हम सब तेरी बलिहार जायँ। तू नाय दे! नाच दे! बलराम-अनुज! यह ले-थेई थेई थेई तत्त थेई’-इस प्रकार मनुहार करती हुई व्रजसुन्दरियाँ ताल देने लगीं एवं श्रीकृष्णचन्द्र नाचने लगे। आज से पंद्रह दिवस पूर्व, अशोक-आलवाल (थाल्हे) में अर्घ्य समर्पण करते हुए, वृक्षशाखा की ओट से व्रजेन्द्रमहिषी ने अपने नीलमणि का सर्वप्रथम नृत्य देखा था-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीगोपालचम्पूः)
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