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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
69. नाग पत्नियों का भी अपने शिशुओं को लेकर श्रीकृष्ण की शरण में उपस्थित होना, स्तुति एवं प्रणाम करना और पति के जीवन की भिक्षा माँगना; श्रीकृष्ण का करुणापूर्वक कालिय के फनों से नीचे उतर आना
नेत्रों से अविरल प्रवाह बह रहा है, अंगों के वस्त्र-भूषण स्खलित हो चुके हैं, वेणी खुल गयी है, आकुलता वश देह की सुधि छूटती-सी जा रही है, चित्त उत्तरोत्तर विह्वल होता जा रहा है - इस दयनीय दशा में नाग वधुएँ अपने छोटे शिशुओं को सामने रखकर, अञ्जलि बाँध कर श्रीकृष्णचन्द्र के चरण कमलों के समीप दण्डवत गिर पड़ीं। उन्हें बार-बार प्रणाम करने लगीं। वे जानती हैं समस्त भूत प्राणियों के पति, प्राणिमात्र के रक्षक ये व्रजेन्द्र नन्दन ही हैं; एकमात्र आश्रय दाता ये नन्दकुल चन्द्र ही हैं। यद्यपि कालिय ने अपराध इन श्रीचरणों में ही किया है, अत्यन्त पापात्मा है यह, फिर भी इन व्रजराज नन्दन के अतिरिक्त अन्य कोई त्राता भी जो नहीं; हम सबों को अपने पति के लिये प्राणदान की भिक्षा भी केवल इन्हीं से प्राप्त हो सकती है। परम करुणामय हमें निराश नहीं करेंगे, हमारी यह कामना अवश्य पूर्ण करेंगे। अतएव एक क्षण भी न खोकर वे श्रीकृष्णचन्द्र की ही शरण ले लेती हैं- आर्ता: श्लथद्वसनभूषणकेशबन्धा:।।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।16।31-32)
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