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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
28. श्रीकृष्ण की ऊखल बंधन लीला
आभीर-सुन्दरियों ने श्रीकृष्णचन्द्र को जननी के अनुशासन से मुक्त करने का कम प्रयास नहीं किया, किंतु सब व्यर्थ। यशोदारानी ने सबकी अनसुनी कर दी। उन्हें तो प्रतीत हो रहा है कि सभी दृष्टियों से नीलमणि को घड़ी आध घड़ी के लिये बाँध रखना आवश्यक है, श्रेयस्कर है। अतः सबकी अवहेलना कर वे श्रीकृष्णचन्द्र को बाँधने चलती हैं। किन श्रीकृष्णचन्द्र को?
‘जिन श्रीकृष्णचन्द्र में न बाहर है न भीतर है, सर्वत्र व्याप्त रहने के कारण जिनमें देशगत परिच्छिन्नता नहीं है; जिनका न तो आदि है न अन्त, त्रिकालसत्य तत्त्व होने के कारण जिनमें कालकृत परिच्छिन्नता भी नहीं है; जो अनन्तकोटि ब्रह्माण्डों के सृजन से पूर्व भी विराजित थे, अनन्त ब्रह्माण्डों का विलय हो जाने के पश्चात भी विराजित रहेंगे, जो अनन्त ब्रह्माण्डों के अन्तराल में अवस्थित हैं, साथ ही उनके बाहर भी विराजित हैं; जो स्वयं ही प्राकृत-अप्राकृत समस्त विश्वब्रह्माण्ड बने हुए हैं उन अचिन्त्यस्वरूप, अधोक्षज (इन्द्रियागोचर) नराकृति परब्रह्म श्रीकृष्णचन्द्र को अपना उदरजात पुत्र मानकर-जैसे कोई काष्ट-पुत्तलिका को बाँधने चले, इस प्रकार व्रजमहिषी ऊखल से बाँधने जा रही हैं!’ |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।9।13-14)
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