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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
7. काकासुर का पराभव, औत्थानिक (करवट बदलने का) उत्सव, जन्म-नक्षत्र का उत्सव, शकटासुर-उद्धार
जब व्रजेन्द्र के नारायण-मन्दिर में घन्टा-शंख-ध्वनि हो कर आरती समाप्त हो जाती है, तब व्रजरानी पुत्र को लिये शयनागार में चली जाती हैं, पुत्र को सुलाने लगती हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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