श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
27. स्तन्यपान-रत श्रीकृष्ण का गोद से उतारकर माता का चूल्हे पर रखे हुए दूध को संभालना और श्रीकृष्ण का रुष्ट होकर दधिभाण्ड को फोड़ देना तथा नवनीतगार में प्रविष्ट होकर कमोरी रखे हुए नवनीत को निकाल-निकाल कर बंदरों को लुटाना; माता-को देखकर श्रीकृष्ण का भागना और यशोदा का उन्हें पकड़कर बाँधने की चेष्टा करना
क्षीरसिन्धु के मन्थन से सुधा निकली थी। अमरवृन्द सुधा का पान करके तृप्त हुए थे; किंतु उस सुधा में वह सर्वथा अनुपम सुस्वाद कहाँ, जो व्रजेश्वरी के स्तन्यपीयूष में है। इसीलिये अनादिकाल से जननी का स्तन्यपान करते रहने पर भी सच्चिदानन्द, पूर्णब्रह्म, अनन्तैश्चर्यनिकेतन स्वयं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र को यहाँ ‘अलम्’ का भान नहीं हुआ; प्रत्युत उनकी यह अमृतपान की अभिलाषा निरन्तर बढ़ती ही जा रही है, अनवरत पीते रहने पर भी तृप्ति होती ही नहीं। आज भी वे यशोदारानी के अंक में विराजित होकर स्तन से झरती हुई वात्सल्यसुधा का रस ले रहे हैं, अपने अरुण अधरों के बीच जननी का स्तनाग्र लेकर, दोनों करपल्लवों से जननी का स्तनाग्र धारण किये, अतिशय उत्कण्ठित हुए, गूँ-गूँ शब्द करते हुए दूध पी रहे हैं, पर तृप्ति नहीं। ज्यों-ज्यों पीते हैं, त्यों-ही-त्यों क्षुधा और भी बढ़ती जा रही है। जिस परिणाम में स्तन से दूध झरता है, मानो उससे सहस्रगुण ने अधिक परिमाण में पीने की लालसा श्रीकृष्णचन्द्र के हृदय में उमड़ चलती है और यह देखकर पुनः व्रजेश्वरी वात्सल्यधारा भी अनन्तगुणित होकर दूध के रूप में बहने लगती है; इससे फिर श्रीकृष्णचन्द्र की स्तन्यपान की उत्कण्ठा बढ़ती है, इस प्रकार व्रजेश्वरी के स्तन्यदान की वह श्रीकृष्णचन्द्र के स्तन्यपान की लालस में होड़ लग रही है। मानो दोनों ही होड़ लगाकर असीम की ओर दौड़ रही हैं। किंतु अचिन्त्यलीला-महाशक्ति को अब आगे की लीला सजानी है। इसीलिये वे स्तन्यदान एवं पान की लीला को बीच में ही छोड़कर आगे बढ़ जाती हैं। जाकर उस चूल्हे की आँच को तेज कर देती हैं, जिस पर यशोदारानी अपने नीलमणि को पिलाने के लिये दूध औटा रही थीं। सहसा आँच तेज हो जाने के कारण दूध उफनने लगता है। व्रजरानी तो अपने नीलमणि को स्तन्यदान करने में, पुत्र के स्मित समन्वित मुखचन्द्र की, उस पर बिखरी कुन्तल-राशि की शोभा निहारने में तन्यम हो रही थीं; पर मानो किसी ने बरबस उनकी तन्मयता तोड़ दी हो, तोड़कर दृष्टि भी उस ओर फेर दी हो- इस प्रकार अचानक जननी की दृष्टि उफनते हुए दूध पर जा पड़ती है-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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