(22)
आजु उनीदे आए मुरारी।
आलसवंत सुभग लोचन सखि!
छिन मूदत छिन देत उघारी ।। 1 ।।
मनहुँ इंदु पर खंजरीट द्वै
कछुक अरुन बिधि रचे सँवारी।
कुटिल अलक जनु मार फंद कर,
गहे सजग है रह्यो सँभारी ।। 2 ।।
मनहुँ उड़न चाहत अति चंचल
पलक पंख छिन देत पसारी।
नासिक कीर, बचन पिक, सुनि करि,
संगति मनु गुनि रहत बिचारी ।। 3।।
रुचिर कपोल, चारु कुंडल बर,
भ्रुकुटि सरासन की अनुहारी।
परम चपल तेहि त्रास मनहुँ खग
प्रगटत दुरत न मानत हारी ।। 4 ।।
जदुपति मुख छबि कलप कोटि लगि
कहि न जाइ जाकें मुख चारी।
तुलसिदास जेहि निरखि ग्वालिनी
भजीं तात पति तनय बिसारी ।। 5 ।।
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