श्रीकृष्ण गीतावली
8. गोपी-विरह
राग धनाश्री
(30) माई री! मुझको चन्द्रमा की अपेक्षा सूर्य ही शीतल लगता है। इस (चन्द्रमा) के उदय होने पर तो मेरे अंग-अंग में बड़े जोर से आग जलने लगती है और उस (सूर्य) के उदय होने पर रात्रि में (चन्द्रदर्शन से) उत्पन्न जलन मिट जाती है।। 1 ।। माधव के बिना सभी प्रतिकूल हो गये हैं। जो हितू थे, वे भी शत्रु का-सा आचरण करने लगे। तुलसीदास जी के शब्दों में गोपी कहती है कि श्यामसुन्दर के वियोग की दःसहनीय दशा का मुझसे वर्णन नहीं हो सकता ।। 2 ।। |
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