श्रीकृष्ण गीतावली
2. गोपी-उपालम्भ
राग गौरी
(10) श्रीकृष्ण ने जब देखा कि ग्वालिनी फीकी पड़ गयी है- झेंप गयी है, तब माता को काम में लगी देखकर (उपयुक्त अवसर जानकर) ग्वालिनी को डाँटते हुए बोले- तूने भले घर बायना- न्योता दिया (सबल से झगड़ा मोल लिया) है (आयी थी मैया को उलाहना देकर मुझे डँटवाने- अब तू ही डाँट सह) ।। 1 ।। कहती थी, अभी कहे देती हूँ, फिर कहती क्यों नहीं (चुप क्यों हो गयी)? इतना कहकर (माता से) छीके पर धरा दही माँगने लगे।। 2 ।। तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु का मुख निरखकर ग्वालिनी चकित रह गयी (प्रेम-विवश हो गयी)। उसके तन-मन में तनिक भी सयानापन (चेतना) नहीं रह गया ।। 3।। |
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