श्रीकृष्ण गीतावली
8. गोपी-विरह
राग सोरठा
(34) गोपियाँ कहती हैं- भ्रमर! जो कुछ कह सकते हो, कह डालो हम तुम पर बलिहारी जाती हैं, तुम्हारा कोई अपराध नही है। संकोच में पड़कर अपने मन की इच्छा को मत मारो ।। 1 ।। तुमने उन रसिक-शेखर के रास-रस का ही आस्वादन किया है; इसी से ढेले-से फेंक रहे को (प्रेमियों के सामने परमार्थ की नीरस चर्चा कर रहे हो) ।। 2 ।। तुलसीदास जी कहते हैं कि जब शरीर को अलग हटाकर प्रियतम श्यामसुन्दर के साथ ये प्राण नहीं चले गये, तब अभी बहुत कुछ सुनना-देखना पड़ेगा। भागय के आगे क्या उपाय है? ।। 3 ।। |
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