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गहगह गगन दुंदुभी बाजी।
बरषि सुमन सुरगन गावत जस,
हरष मगन मुनि सुजन समाजी
सानुज सगन ससचिव सुजोधन
भए मुख मलिन खाइ खल खाजी[1]।
खाजी लाज गाज उपवनि कुचाल कलि
प्री बजाइ कहूँ कहुँ गाजी ।। 2 ।।
भुरि ति प्रतीति द्रुपदतनया की
भली भूरि भय भभरि न भाजी।
कहि पारथ सारथिहि सराहत
गई बहोरि गरीब नेवाजी ।। 3 ।।
सिथिल सनेह मुदित मनहीं मन
बसन बीच बीच बधू बिराजी।
सभा सिंधु जदुपति जय जय जनु
रमा प्रगटि त्रिभुवन भरि भ्राजी ।। 4 ।।
जुग जुग जग साके केसव के
समन कलेस कुसाज सुसाजी
तुलसी को न होइ सुनि कीरति
कृष्न कृपालु भगति पथ राजी ।। 5 ।।
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