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सुनत कुलिस सम बचन तिहारे।
चित दै मधुर! सुनइु सोइ कारन,
जाते जात न प्रान हमारे ।। 1 ।।
ग्यान कृपान समान लगत उर,
बिहरत छिन-छिन होत निनारे।
अविध जरा जोरति हठि पुरि-पुनि,
याते रहत सहत दुख भारे ।। 2 ।।
पवक बिरह, समीर स्वास,
तनु तूल मिले तुम जारनिहारे।
तिन्हहि निदरि अपने हित कारन,
राखत नयन निपुन रखवारे ।। 3 ।।
जीवन कठिन, मरन की यह गति,
दुसह बिपति ब्रजनाथ निवारे।
तुलसिदास यह दसा जानि जियँ,
उचित होइ सो कहौ अलि! प्यारे ।। 4 ।।
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