श्रीकृष्ण गीतावली
7. शोभा-वर्णन
राग बिलावल
(21) (प्रियतम श्रीकृष्ण के मुखचन्द्र को देखकर एक सखी कहती है) सखी! (प्रियतम) श्यामसुन्दर के मुखचन्द्र पर चिकनी और घुँघराली अलकावली की छवि तो देख। उसकी ऐसी अनुपम और श्रेष्ठ शोभा है कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता ।। 1 ।। ऐसा लगता है कि मानो बाल नागिनियों के दल ने चन्द्रमा को अमृतरूप जानकर घेर लिया है। पर वे न तो उसे छोड़ ही सकती हैं और न पान ही करती हैं। सोचकर बताओ तो इसका क्या कारण है, वे किस डर से डरी हुई हैं ।। 2 ।। श्यामसुन्दर के लाल कमल के सदृश नेत्र हैं, मनोहर कपोल हैं, कान अत्यन्त सुन्दर कुण्डलों से सुशोभित हैं। ऐसा लगता है मानो समुद्र ने अपने पुत्र (चन्द्रमा) को मनाने के लिये (मकराकृति दो कुण्डलों के रूप में) दो जलचरों (मगरों) को दूत बनाकर भेजा है।। 3।। नन्दनन्दन के श्रीमुख की सुन्दरता का वर्णन वेद, शेष जी और पार्वती पति शंकर जी भी नहीं कर सकते। तुलसीदास जी कहते हैं कि लीला से मनुष्य बने हुए एवं तीनों लोको को विमोहित करने वाले श्रीकृष्ण का यह रूप तीनों (दैहिक, दैविक, भौतिक) तापों को हर लेता है।। 4 ।। |
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