श्रीकृष्ण गीतावली 8. गोपी-विरह राग धनाश्री (31) संतत दुखद सखी! रजनीकर। स्वारथ रत तब, अबहुँ एकरस, मो को कबहूँ न भयो तापहर ।। 1 ।। निज अंसिक सुख लागि चतुर अति, कीन्ही प्रथम निसा सुभ सुंदर। अब बिनु मन तन दहतए दया करि।[1] राखत रबि ह्वै नयन बारिधर ।। 2 ।। जद्यपि है दारून बड़वानल, राख्यो है जलधि गँभीर धीरतर। ताहु तें परम कठिन जान्यो ससि, तज्यो पिता, तब भयो ब्योमचर ।। 3 ।। सकल बिकार कोस बिरहिनि रिपु काहे तें याहि सराहत सुर नर। तुलसिदास त्रैलाक्य मान्य भयो, कारन इहै, गह्यो गिरिजाबर ।। 4 ।। इस पद का अनुवाद अगले पृष्ठ पर है। टीका टिप्पणी और संदर्भ ↑ तजि संबंधित लेख श्रीकृष्ण गीतावली -तुलसीदास क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या 1. बाल-लीला 1 2. गोपी-उपालम्भ 4 3. उलूखल-बन्धन 15 4. इन्द्रकोप-गोवर्धन-धारण 21 5. गोचारण अथवा छाक-लीला 40 6. यमुना तट पर वंशीवादन 24 7. शोभा-वर्णन 5 8. गोपी-विरह 29 9. भक्त-मर्यादा-रक्षण 71 पदों की वर्णानुक्रमणिका 1. अब सब साँची कान्ह तिहारी। 6 2. अबहिं उरहनो दै गई, बहुरौ फिरि आई। 8 3. अब ब्रज बास महरि किमि कीबो। 9 4. आजु उनीदे आए मुरारी। 26 5. आलि! अब कहुँ जनि नेह निहारि। 33 6. आली! टति अनुचित, उतरु न दीजैं। 52 7. ऊधो! या ब्रज की दसा बिचारौ। 40 8. ऊधो जू कह्यो तिहारोह कीबो। 42 9. ऊधो! यह ह्या न कछू कहिबे ही। 47 10. ऊधो हैं बड़े, कहैं सोइ कीजै। 53 11. ऊधो! प्रीति करि निरमोहियन सों को न भयो दुख दीन?। 63 12. ऐसो हौंहुँ जानति भृंग! 62 13. कबहुँ न जात पराए धामहिं। 5 14. कहा भयो कपट जुआ जौ हौं हारी। 71 15. करि है हरि बालक की सी केलि। 32 16. कही है भली बात सब के मन मानी। 56 17. कान्ह, अलि, भए नए गुरू ग्यानी। 54 18. काहे को कहत बचन सँवरि। 61 19. कोउ सखि नई बात सुनि आई। 39 20. कौन सुनै अलि की चतुराई। 59 21. गहगह गगन दुंदुभी बाजी। 73 22. गावत गोपात लाल नीकें राग नट हैं। 24 23. गोपाल गोकुल बल्लवी प्रिय गोप गोसुत बल्लभं। 28 24. गेकुल प्रीति नित नई जानि। 25 25. छपद! सुनहु बर बचन हमारे। 66 26. छाँडो मेरे ललन! ललित लरिकाई। 13 27. छोटी मोटी मीसी रोटी चिकनी चुपरि कै तू 2 28. जब ते ब्रज तजि गये कन्हाई। 35 29. जानी है ग्वालि परी फिरि फीकें। 10 30. जो पै अलि! अंत इहै करिबो हो। 46 31. जौलौं हौं कान्ह रहौं गुन गोए। 11 32. टेरीं (कान्ह) गोबर्धन गैया। 22 33. ताकी सिख ब्रज न सुनैगो कोउ भोरें। 51 34. तोहि स्याम की सपथ जसोदा! आइ देखु गृह मेंरें। 3 35. दीन्ही है मधुप सबहि सिख नीकी। 50 36. देखु सखी हरि बदन इंदु पर। 25 37. नहिं कछु दोष स्याम को माई। 30 38. ब्रज पर घन घमंड करि आए। 21 39. बिछुरत श्रीब्रजराज आजु 29 40. भली कही, आली हमहुँ पहिचाने। 25 41. भूलि न जात हौं काहू के काऊ। 45 42. महरि तिहारे पायँ परौं, अपनो ब्रज लीजै। 7 43. मधुकर! कहहु कहन जो पारौ। 41 44. मधुकर! कान्ह कही ते न होही। 48 45. मधुप! समुझि देखहु मन माही। 68 46. मधुप! तुम्ह कान्ह ही की कही क्यों न कही है? 49 47. ( माता) लै उछंग गोबिंद मुख बार-बार निरखै। 1 48. मेने जान और कछु न मन गुनिए। 44 49. मो कहँ झूठेहुँ दोष लगावहिं। 4 50. मोको अब नयन भए रिपु माई! 69 51. ललित लालन निहारि, महरि मन बिचारि, 19 52. लागियै रहति नयननि आगे तें 34 53. लेत भरि भरि नीर कान्ह कमल नैन। 16 54. सब मिलि साहस करिय सयानी। 55 55. ससि तें सीतल मोकौं लागै माई री! तरनि। 36 56. सो कहौ मधुप! जे मोहन कहि पठई। 43 57. सुनत कुलिस सम बचन तिहाने। 64 58. संतत दुखद सखी! रजनीकर। 37 59. हरि को ललित बदन निहारु 15 60. हा हा री महरि! बारो, कहा रिस बस भई, 17 61. हे हम समाचार सब पाए। 57 वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः