श्रीकृष्ण गीतावली
2. गोपी-उपालम्भ
राग आसावरी
(6) (ग्वालिनी व्यंगभरी वाणी में श्रीकृष्ण से कहती हैं-) कन्हैया! अब तो तुम्हारी सभी बातें सत्य हैं। मोहन! हमने जब तुम्हें छोड़ दिया तब मौका पाकर तुम गाली देते हुए घर भाग आये ।। 1 ।। और अब सिसकियाँ भरकर, भयभीत एवं लज्जित हो तथा रूखा मुँह बनाकर (माता के सामने) सारी बातें सँवार-बना लीं। माता यशोदा ने भी तुम्हें साधु समझकर परम स्नेह से हँसकर हृदय से लगा लिया ।। 2 ।। अब तो हम करोड़ो युक्तियाँ का आश्रय लेकर शपथपूर्वक भी कहें तो भी हमारी कौन मानेगा? तुम्हारी इस (बनावटी साधु) सूरत को देखकर क्यों कोई भली स्त्री (तुम्हारी बात न मानकर) दूसरे की तरह कहेगी ।। 3 ।। व्रजनायक! मैं तुम पर बलिहारी जाती हूँ। तुम जैसे हो, वैसे ही सुख देने वाले हो। तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु की मुख-छवि को निरखकर ग्वालिनी को मन की सारी युक्तियाँ भूल गयीं।। 4 ।। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज