श्रीकृष्ण गीतावली
1. बाल-लीला
राग ललित
(2) (श्रीकृष्ण अपनी माता यशोदा से कहते हैं-) मैया री! तू मुझे छोटी किंतु मोटी, चिकनी, मीस्सी रोटी घी लगाकर दे।' (मैया बोली-)' कन्हैया! ले।' (पुत्र ने पूछा–) 'उसे कब देगी ?'(माता बोली-)' बेटा! अभी (देती हूँ)' (श्रीकृष्ण ने कहा– 'तो मैया!) पूरी रोटी मैं ही खाऊँगा, बलदाऊ भैया को (उसमें से हिस्सा) नहीं दूँगा।' (यशोदा ने पूछा-) 'ऐसा क्यों?' (श्रीकृष्ण बोले-)'अरी भली औरत, (इसमें) तेरा क्या (बिगड़ता है)? मैं अकेला ही खाऊँगा)' और यों कहकर वे इधर.उधर चले जाते हैं ।। 1 ।। (और-और) बालकों को बुलाकर उन्हें रोटी दिखा-दिखाकर, किंतु उनके माँगने पर न देकर चिढ़ाते हैं। (उनके इन) चरित्रों को देखकर गोपियाँ और यशोदा मैया मोद में भर जाती हैं, उनके शरीर रोमाञित हो जाते हैं। श्रीकृष्ण अपने ही नूपुरों की ध्वनि और करधनी का मधुर शब्द सुनकर कूद-कूद तथा किलक-किलककर खड़े-खड़े ही रोटी खा रहें हैं ।। 2 ।। उनकी कमर में सुन्दर कछनी है, सिर पर विचित्र मुकुटाकार चौगोसिया टोपी है; जब तुतलाकर बोलते हैं(तब तो) वे मुनियों का (भी) मन हर लेते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि देवता तथा सिद्धगण यह (देख) देखकर हर्षित होते, फूल बरसाते और महान भाग्यशाली व्रजवासियों से ईर्ष्या करते हैं। (मन ही मन) कहते हैं कि हमारे भाग्य इन व्रजवासियों-जैसे नहीं हैं, तभी तो हम इस सुख से वञ्चित हैं।) ।। 3 ।। |
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