श्रीकृष्ण गीतावली
8. गोपी-विरह
राग मलार
(32) तुलसीदास जी कहते हैं- कोई सखी (यह) नयी बात सुनकर आयी है कि कामदेव ने यह सम्पूर्ण व्रजभूमि देवराज इन्द्र से अपनी मिल्कियत (सम्पत्ति) के रूप में प्राप्त कर ली है।। 1 ।। बादल उस कामदेव के बिजली संदेश वाहक दूत हैं, उड़ती हुई बगुलों की कतार उसका शिरोवेष्टन है, बिजली सुन्दर सैनिक-झंड़ा हैं, कोकिल की बोली मानो भाटों का यशोगान है मेध-गर्जन के बहाने मानो उसकी दुहाई फिर रही है।। 2 ।। चातक, मोर, चकोर, भ्रमर, तोते, पुष्प, पवन- ये सब उसके सहायक हैं। अब वह (कामदेव) वृन्दावन में ही (डेरा डालकर) रहना चाहता है। विधाता के आगे कुछ भी वश नही चलता ।। 3 ।। (नहीं तो) जब तक बलराम-श्याम यहाँ थे, तब तक कोई भी यहाँ की सीमा (मर्यादा) को नहीं दबा सका था। अब गिरधरलाल के बिना इस गोकुल का स्वामित्व कौन करेगा? ।। 4 ।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चाह
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