(50) हे हम समाचार सब पाए। अब बिसेष देखे तुम देखे, हैं कूबरी हाँक से लाए[1] ।। 1 ।। मथुरा बड़ो नगर नागर जन, जिन्ह जातहिं जदुनाथ पढ़ाए। समुझि रहनिए सुनि कहनि बिरह ब्रन, अनख अमिय ओषध सरुहाए ।। 2 ।। मधुकर रसिक सिरोमनि कहियत, कौने यह रस रीति सिखाए। बिनु आखर को गीत गाइ कै[2] चाहत ग्वालिन ग्वाल रिझाए ।। 3 ।। फल पहिले हीं लों ब्रजबासिन्ह, टब साधन उपदेसन आए। तुलसी अलि अजहुँ नहीं बूझत, कौन हेतु नँदलाल पठाए ।। 4 ।। इस पद का अनुवाद अगले पृष्ठ पर है।