श्रीकृष्ण गीतावली
2. गोपी-उपालम्भ
राग गौरी
(यशोदा मैया हँसकर बड़े प्रेम से समझाती हुई श्यामसुन्दर से कहती है-) मेरे लाल! तू इस ललित लड़कपन को छोड़ दे (तू जो किसी के घर जाकर माखन खा आता है, यह तेरा कोई अपराध थोड़े ही है, लड़कपन है, बच्चे ऐसा किया ही करते हैं। और यह है भी ललित-अत्यन्त सुन्दर। इससे सभी को सुख मिलता है, पर लोग कहेंगे कि 'यह तो चोर है, इसके साथ ब्याह की बात कैसी?' इससे तेरी सगाई में बाधा पड़ जायगी)। बेटा! कल ही तुम्हें देखने वाले आयेंगे; क्योंकि तेरे बाबा (नन्द जी) ने तेरे ब्याह की बात चला रखी है।। 1 ।। चोरी की बात सुनकर तेरे (भावी) सास-ससुर डर जायँगे (और तेरी सगाई नहीं करेंगे); तेरी वह परम सुहावनी नयी दुलहिनी भी हँसी करेगी (अत एव तू इस टेव को छोड़ दे)। आ तेरे उबटन लगा दूँ; फिर तू नहा ले, मैं तेरी चोटी गूँथ दूँ। मैं तेरी बलिहारी जाती हूँ। (इस प्रकार तू सुन्दर बन जाएगा) तब तुझे सुन्दर वर देखकर देखने वाले बड़ाई करेंगे' ।। 2 ।। श्यामसुन्दर ने माता का कहा मान लिया, बोले-(मैया! अब मैं चोरी नहीं करूँगा; फिर जब नहा-धोकर चोटी गुँथवाकर तैयार हो गये, तब) पुकार कर बोले (मैया!) बहुत देर हो गयी, (तूने कहा था न कि वे कल आयेंगे, सो वह) कल तो अभी आया नहीं। यशोदा बोलीं-बेटा! हाँ (सच तो है अभी कल नहीं आया)। तू जब सो जायगा (रात बीत जायगी, तब कल आयेगा)। इतना सुनते ही श्रीकृष्ण 'अच्छा' कहकर आँखे मूँदकर सो गये ।। 3 ।। (फिर तुरंत ही) उठकर बोले-(मैया!) सबेरा हो गया, झँगुली दे (पहन लूँ, वे मुझे देखने वाले आते ही होंगे)। महरि यशोदा जी पुत्र के विवाह के लिये इतनी आतुरता देखकर प्रमुदित हो गयीं। ग्वालिनी बड़े जोर से हँस पड़ी। तुलसीदास जी कहते हैं कि यह देखकर प्रभु श्रीश्यामसुन्दर लजाकर दौड़कर अपनी माता के हदय से चपट गये।। 4 ।। |
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