श्रीकृष्ण गीतावली -तुलसीदास पृ. 14

श्रीकृष्ण गीतावली

Prev.png
2. गोपी-उपालम्भ
राग गौरी

(यशोदा मैया हँसकर बड़े प्रेम से समझाती हुई श्यामसुन्दर से कहती है-) मेरे लाल! तू इस ललित लड़कपन को छोड़ दे (तू जो किसी के घर जाकर माखन खा आता है, यह तेरा कोई अपराध थोड़े ही है, लड़कपन है, बच्चे ऐसा किया ही करते हैं। और यह है भी ललित-अत्यन्त सुन्दर। इससे सभी को सुख मिलता है, पर लोग कहेंगे कि 'यह तो चोर है, इसके साथ ब्याह की बात कैसी?' इससे तेरी सगाई में बाधा पड़ जायगी)। बेटा! कल ही तुम्हें देखने वाले आयेंगे; क्योंकि तेरे बाबा (नन्द जी) ने तेरे ब्याह की बात चला रखी है।। 1 ।। चोरी की बात सुनकर तेरे (भावी) सास-ससुर डर जायँगे (और तेरी सगाई नहीं करेंगे); तेरी वह परम सुहावनी नयी दुलहिनी भी हँसी करेगी (अत एव तू इस टेव को छोड़ दे)। आ तेरे उबटन लगा दूँ; फिर तू नहा ले, मैं तेरी चोटी गूँथ दूँ। मैं तेरी बलिहारी जाती हूँ। (इस प्रकार तू सुन्दर बन जाएगा) तब तुझे सुन्दर वर देखकर देखने वाले बड़ाई करेंगे' ।। 2 ।। श्यामसुन्दर ने माता का कहा मान लिया, बोले-(मैया! अब मैं चोरी नहीं करूँगा; फिर जब नहा-धोकर चोटी गुँथवाकर तैयार हो गये, तब) पुकार कर बोले (मैया!) बहुत देर हो गयी, (तूने कहा था न कि वे कल आयेंगे, सो वह) कल तो अभी आया नहीं। यशोदा बोलीं-बेटा! हाँ (सच तो है अभी कल नहीं आया)। तू जब सो जायगा (रात बीत जायगी, तब कल आयेगा)। इतना सुनते ही श्रीकृष्ण 'अच्छा' कहकर आँखे मूँदकर सो गये ।। 3 ।। (फिर तुरंत ही) उठकर बोले-(मैया!) सबेरा हो गया, झँगुली दे (पहन लूँ, वे मुझे देखने वाले आते ही होंगे)। महरि यशोदा जी पुत्र के विवाह के लिये इतनी आतुरता देखकर प्रमुदित हो गयीं। ग्वालिनी बड़े जोर से हँस पड़ी। तुलसीदास जी कहते हैं कि यह देखकर प्रभु श्रीश्यामसुन्दर लजाकर दौड़कर अपनी माता के हदय से चपट गये।। 4 ।।

Next.png

संबंधित लेख

श्रीकृष्ण गीतावली -तुलसीदास
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. बाल-लीला 1
2. गोपी-उपालम्भ 4
3. उलूखल-बन्धन 15
4. इन्द्रकोप-गोवर्धन-धारण 21
5. गोचारण अथवा छाक-लीला 40
6. यमुना तट पर वंशीवादन 24
7. शोभा-वर्णन 5
8. गोपी-विरह 29
9. भक्त-मर्यादा-रक्षण 71
पदों की वर्णानुक्रमणिका
1. अब सब साँची कान्ह तिहारी। 6
2. अबहिं उरहनो दै गई, बहुरौ फिरि आई। 8
3. अब ब्रज बास महरि किमि कीबो। 9
4. आजु उनीदे आए मुरारी। 26
5. आलि! अब कहुँ जनि नेह निहारि। 33
6. आली! टति अनुचित, उतरु न दीजैं। 52
7. ऊधो! या ब्रज की दसा बिचारौ। 40
8. ऊधो जू कह्यो तिहारोह कीबो। 42
9. ऊधो! यह ह्या न कछू कहिबे ही। 47
10. ऊधो हैं बड़े, कहैं सोइ कीजै। 53
11. ऊधो! प्रीति करि निरमोहियन सों को न भयो दुख दीन?। 63
12. ऐसो हौंहुँ जानति भृंग! 62
13. कबहुँ न जात पराए धामहिं। 5
14. कहा भयो कपट जुआ जौ हौं हारी। 71
15. करि है हरि बालक की सी केलि। 32
16. कही है भली बात सब के मन मानी। 56
17. कान्ह, अलि, भए नए गुरू ग्यानी। 54
18. काहे को कहत बचन सँवरि। 61
19. कोउ सखि नई बात सुनि आई। 39
20. कौन सुनै अलि की चतुराई। 59
21. गहगह गगन दुंदुभी बाजी। 73
22. गावत गोपात लाल नीकें राग नट हैं। 24
23. गोपाल गोकुल बल्लवी प्रिय गोप गोसुत बल्लभं। 28
24. गेकुल प्रीति नित नई जानि। 25
25. छपद! सुनहु बर बचन हमारे। 66
26. छाँडो मेरे ललन! ललित लरिकाई। 13
27. छोटी मोटी मीसी रोटी चिकनी चुपरि कै तू 2
28. जब ते ब्रज तजि गये कन्हाई। 35
29. जानी है ग्वालि परी फिरि फीकें। 10
30. जो पै अलि! अंत इहै करिबो हो। 46
31. जौलौं हौं कान्ह रहौं गुन गोए। 11
32. टेरीं (कान्ह) गोबर्धन गैया। 22
33. ताकी सिख ब्रज न सुनैगो कोउ भोरें। 51
34. तोहि स्याम की सपथ जसोदा! आइ देखु गृह मेंरें। 3
35. दीन्ही है मधुप सबहि सिख नीकी। 50
36. देखु सखी हरि बदन इंदु पर। 25
37. नहिं कछु दोष स्याम को माई। 30
38. ब्रज पर घन घमंड करि आए। 21
39. बिछुरत श्रीब्रजराज आजु 29
40. भली कही, आली हमहुँ पहिचाने। 25
41. भूलि न जात हौं काहू के काऊ। 45
42. महरि तिहारे पायँ परौं, अपनो ब्रज लीजै। 7
43. मधुकर! कहहु कहन जो पारौ। 41
44. मधुकर! कान्ह कही ते न होही। 48
45. मधुप! समुझि देखहु मन माही। 68
46. मधुप! तुम्ह कान्ह ही की कही क्यों न कही है? 49
47. ( माता) लै उछंग गोबिंद मुख बार-बार निरखै। 1
48. मेने जान और कछु न मन गुनिए। 44
49. मो कहँ झूठेहुँ दोष लगावहिं। 4
50. मोको अब नयन भए रिपु माई! 69
51. ललित लालन निहारि, महरि मन बिचारि, 19
52. लागियै रहति नयननि आगे तें 34
53. लेत भरि भरि नीर कान्ह कमल नैन। 16
54. सब मिलि साहस करिय सयानी। 55
55. ससि तें सीतल मोकौं लागै माई री! तरनि। 36
56. सो कहौ मधुप! जे मोहन कहि पठई। 43
57. सुनत कुलिस सम बचन तिहाने। 64
58. संतत दुखद सखी! रजनीकर। 37
59. हरि को ललित बदन निहारु 15
60. हा हा री महरि! बारो, कहा रिस बस भई, 17
61. हे हम समाचार सब पाए। 57

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः