श्रीकृष्ण गीतावली
2. गोपी-उपालम्भ
राग गौरी
(12) (श्रीश्यामसुन्दर माता से बोले-) मैया! मैं भूलकर भी कभी किसी के (घर) नहीं जाता। सुबल, सुदामा (आदि) सभी मेरे सखा इसके साक्षी हैं। (और तो क्या, तू) बलदाऊ (भैया) को बुलाकर उसी से पूछ देख ।। 1 ।। यह (ग्वालिनी) तो करोड़ों भाँति से मुझे तंग करके (तुमसे मैं कुछ कहूँ) इससे पहले ही अपना दोष छिपाने के लिये) आगे-आगे झगड़ा करने आ पहुँची हैं। मैया! (तू) इसे क्या मुँह लगाती है। यह (बड़ी) नटखट और झगड़ालू है, क्या यह किसी को कुछ गिनती है।। 2 ।। (इस प्रकार) ग्वालिन और गोपाल परस्पर उतर-प्रत्युतर देते हैं; किंतु यशोदा जी समझ नहीं पातीं कि किस में कितना कपट है और किसका सच्चा भाव है। तुलसीदास जी कहते हैं कि ग्वालिनी भी (बोलने तथा भाव-भंगिमा दिखाने में) अत्यन्त चतुर है और नन्दलाल श्यामसुन्दर तो नट-नागरों के मुकुटमणि ही ठहरे। फिर इनके कपट-सत्य का किसी को कैसे पता लगे? ।। 3 ।। |
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