पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
24. दानी कर्ण
श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन भी छिपकर भवन के बहि:कक्ष से भीतर देखने लगे। कर्ण ने अपने भवन पर द्वारपाल रखे ही नहीं थे। वह महामनस्वी चाहता था कि रात-दिन में चाहे जब, चाहे जो भी अर्थी बिना किसी रुकावट के उसके समीप तक पहुँच सके। कर्ण ने ब्राह्मण को आसन देकर पूजन किया और आने का प्रयोजन पूछा। ब्राह्मण ने अपनी बात कह दी। कर्ण ने अपने प्रबन्धक की ओर देखा किन्तु प्रबन्धक ने शीघ्र सूचित कर दिया कि भवन के भण्डार में इस समय सूखा चन्दन नहीं है। ‘बहुत चन्दन है यहाँ।’ कर्ण ने हँसकर कहा। उसने किसी को नगर में जाकर चन्दन लाने की आज्ञा भी नहीं दी। अपने उस प्रधान सेवक को कह दिया – ‘तुम इन अतिथि देव के रन्धन के लिए शेष सामग्री शीघ्र एकत्र करो। ये तीन दिन से उपोषित हैं। इसमें क्षण भर का भी विलम्ब असह्य है। ईंधन मैं स्वयं वहाँ ला रहा हूँ।’ ब्राह्मण ने कहा – ‘राजन ! ईंधन जल के छींटों से सर्वथा असंस्पृष्ट होना चाहिए और उसका प्रयोजन ही तो प्रथम है।’ कर्ण ने उत्तर नहीं दिया। उसने अपना धनुष उठाकर ज्यासज्ज किया और उस अद्भुत उदार पुरुष के वाणों ने दो क्षण में तो उस भवन के कलापूर्ण चन्दन के भारी किवाड़ों तथा शय्या के काष्ठ को चीरकर ढेर कर दिया। इतना करके धनुष की प्रत्यञ्चा उतारते हुए कर्ण ने पूछा – ‘भगवन ! इतना ईंधन आशा है पर्याप्त होगा।’ ब्राह्मण हर्ष विह्वल स्वर में बोले – ‘राजन ! आपका कल्याण हो। इसका बहुत अल्पाशं ही मेरे रन्धन के लिये पर्याप्त है।’ श्रीकृष्णचन्द्र ने अर्जुन की भुजा पकड़ी और उन्हें वहाँ से बाहर ले आये। दोनों रथ में बैठे। मार्ग में सारथि बने श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा – ‘धनंजय ! तुमने देख ही लिया कि मैं क्यों कर्ण के दानशीलता की प्रशंसा करता हूँ। धर्मराज के राजसदन में चन्दन से निर्मित कपाट, शैय्या, आसन तथा दूसरे उपकरणों की बहुलता है और मैं जानता हूँ कि उनमें से किसी पदार्थ को ब्राह्मण के लिए ईंधन बना देने में तुम में-से किसी को एक क्षण के लिए भी संकोच नहीं होगा किन्तु समय पर स्मरण आने का महत्व बहुत बड़ा है। सहज स्वभाव ही जिसका दान करना हो उसी को तत्काल यह स्मरण आ सकता है। ऐस स्वभाव सिद्ध दानी तो कर्ण ही इस समय धरा पर है।’ ‘धन्य हैं कर्ण !’ अर्जुन ने उन्मुक्त कण्ठ से कहा –‘इसलिए भी धन्य हैं कि आप जनार्दन उनकी इस प्रकार प्रशंसा करते हैं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज