पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
91. युधिष्ठिर को धर्मोपदेश
समूह में कही गई बात प्रचारित होगी और उसका अनधिकारी कोई ऐसा भी अर्थ कर सकते हैं जो अभीष्ट न हो तथा अनर्थकारी हो। इस ओर से भी वक्ता को सावधान रहना ही पड़ता है। देवर्षि, महर्षि, ब्रह्मर्षि, योगीगण आ गये तो बात का महत्व बहुत बढ़ गया। ये सब कारक पुरुष लोक में धर्म की स्थापना करते घूमते हैं। इनके द्वारा सद्धर्म का समय-समय पर उपदेश होता है। ये स्वयं कृतकृत्य हैं, अत: इनको स्वयं के लिए किसी उपदेश-श्रवण की आवश्यकता नहीं। सामन्य समाज के कल्याण का साधन ही इनके सम्मुख सुनाया जाना चाहिए। एक बड़ी कठिनाई है सामान्य व्यक्ति की कि वह कर्तव्य के अभिमान से युक्त होता है। वह कुछ करेगा तब कुछ होगा, यह उसकी बद्धमूल धारणा है। अत: स्मृति-शास्त्र उसे करणीय-अकरणीय का उपदेश करते हैं। भागवत-धर्म इस कर्तृव्य के अभिमान का ही उत्सर्ग माँगता है। उसका प्रारम्भ ही कर्तृत्वाभिमान के उच्छेद से-समर्पण से होता है। अत: बहुत अल्प अधिकारी उसे ठीक हृदयंगम कर पाते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर स्वयं धर्ममूर्ति थे। स्मृति-प्रतिपादित धर्म के मर्मज्ञ थे। धर्माधर्म का अधिकारी व्यक्ति अर्थात कर्ता होता है। इस कर्तृव्य के आग्रह के कारण ही बार-बार युधिष्ठिर को युद्ध में हुए संहार में अपने निमित्त होने से वेदना होती थी। अब इतने कारक पुरुषों को आया देखकर वे सामान्य समाज के लिए-कर्तृव्य भावापन्न प्राणी के लिए कर्तव्याकर्तव्य का ध्यान रखकर पूछने लगे। युधिष्ठिर ने चारों वर्णों के कर्म तथा उनका फल पूछा। धर्म की बुद्धि तथा पाप-क्षय होने के उपाय पूछे। सात्त्विकादि दान के भेद जानने चाहे। दान के योग्य पात्र का स्वरूप पूछा। जल दान, अन्न दान तथा अतिथि सत्कार का फल पूछा। भूमिदान प्रभृति विविध प्रकार के दानों के सम्बन्ध में जिज्ञासा की यह दानों का वर्णन इसलिए आरम्भ हुआ; क्योंकि युधिष्ठिर ने यमलोक के मार्ग के कष्ट और यमलोक की यातना के विषय में पूछ लिया था। उसके कष्टों को सुनकर उससे छूटने के लिए उपाय के रूप में दान का फल वे जानना चाहते थे। पञ्चमहायज्ञ के वर्णन में स्नान, स्नान के अंगभूत कर्म, पूजन तथा पूजनोपयोगी पुष्पों एवं निषिद्ध पुष्पों का वर्णन भी पूछा गया। पुण्यों में सबसे प्रधान गोदान, गोपूजन। अत: गौका, कपिला गौका स्वरूप, माहात्म्य आदि भी पूछा गया। शौचाचार तथा अतिथि-सत्कार के सम्बन्ध में भी जिज्ञासा की गयी। धर्मराज ने भोजन की विधि, गायों को घास डालने के विधि तक पूछी। ब्राह्मणों के लिए निषिद्ध व्यापार पूछा। आपद्धर्म, मानव धर्म का सार तथा श्राद्ध का उत्तम काल जानना चाहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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