पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
61. सत्यासत्य
युधिष्ठिर ने हृदय में बहुत व्यथा का अनुभव किया किन्तु श्रीकृष्ण के आदेश को सर्वथा अस्वीकार भी नहीं किया जा सकता था। उन्होंने उच्च स्वर से कहा- ‘अश्वत्थामा मारा गया, फिर धीरे से बोले- ‘किन्तु हाथी।' श्रीकृष्णचन्द्र ने अपना पाञ्चजन्य शंख अधरों लगा लिया था। युधिष्ठिर का ‘किन्तु हाथी’ ये धीरे से बोले गये शब्द उसके भयंकर निनाद में कोई कैसे सुनता। कहते हैं कि युधिष्ठिर के रथ चक्र उनकी सत्यवादिता के प्रभाव से पृथ्वी से सदा चार अंगुल ऊपर रहते थे। उनके मुख से असत्य निकलते ही वे पृथ्वी से सट गये। एक महापुरुष ने इस विषय में लिखा है- ‘युधिष्ठिर ने सच्चे मन से श्रीकृष्ण की बात स्वीकार कर ली होती तो उनका रथ चार अंगुल के स्थान पर चौदह अंगुल ऊपर उठ गया होता। बात महापुरुष की सच है। युधिष्ठिर ने अपने सत्य को बड़ा माना, उसे महत्ता दी और तब भी उसके साथ छल किया। यदि वे धर्म के परमप्रभु श्रीकृष्ण के आदेश पर आस्था करके बिना हिच के स्पष्ट पालन करते उसका तो उनकी किञ्जित भी धर्म-हानि नहीं होती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज