32. श्रीकृष्ण के नाम-संजय की व्याख्या
‘मधु दैत्य का वध करने के कारण उनका नाम मधुसूदन पड़ा है।
‘कृष धातु का अर्थ है सत्ता। ण आनन्द का वाचक है। आनन्द की सत्ताा होने के कारण वे यदुकुल में अवतीर्ण प्रभु कृष्ण हैं।
‘हृदय पुण्डरीक ही उनका नित्यधाम है, अत: वे पुण्डरीकाक्ष हैं।
‘दुष्टों का दमन करने के कारण उनका नाम जनार्दन है।
‘सत्वगुण से कभी च्युत न होने के कारण तथा कभी सत्त्व की उनसे च्युति न होने के कारण वे सात्वत हैं।
‘आर्ष उपनिषदों द्वारा प्रकाशित होने के कारण आर्षभ हैं।
‘वेद ही उनके नेत्र हैं, अत: वृषभेक्षण कहे जाते हैं।
‘किसी भी जन्मशील प्राणी से उत्पन्न न होने के कारण वे अज हैं।
उदरादि सभी इन्द्रियों के प्रकाशक और उनका दमन करने वाले होने से उनका नाम दामोदर है।
‘वृत्तिसुख और स्वरूप सुख का नाम हृषीक है। इनके ईश होने से वे हृषीकेश कहलाते हैं।
‘अपनी भुजाओं से ही पृथ्वी-आकाश सबके धारक होने से वे महाबाहु हैं।
‘वे कभी अध –नीचे नहीं होते अत: अधोक्षज हैं।
‘नरों के अयन आश्रय होने से नारायण हैं।
‘जो सबमें पूर्ण हो और सर्वाश्रय हो, उसे पुरुष कहते हैं। उस पुरुष से भी श्रेष्ठ होने से उनका नाम पुरुषोतम है।
‘सत असत सबकी उत्पत्ति और लय के स्थान होने के कारण वही सर्व हैं।
‘श्रीकृष्ण सत्य में प्रतिष्ठित हैं और सत्य उनमें प्रतिष्ठित है इसलिए वही सत्य है।
‘विश्व को व्याप्त करने तथा विक्रमण करने के कारण वे विष्णु हैं।
‘सबको जय करने के कारण जिष्णु हैं।
‘नित्य होने से वे अनन्त हैं।
‘गो अर्थात इन्द्रियों के ज्ञाता होने से गोविन्द हैं।
‘वे निरन्तर धर्म में स्थित रहने वाले, भगवान मधुसूदन कौरवों को नाश से बचाने के लिए यहाँ पधारने वाले हैं।’
संजय ने श्रीकृष्ण के नामों की व्याख्या करके उनके आगमन की सूचना दी और सम्मति दी कि उनकी बात पूरे ध्यान से सुननी चाहिए। उनकी वाणी को मान लेने में ही कौरवों का हित है।
धृतराष्ट्र को संजय की सम्मति उचित और आचरण करने योग्य लगती थी किन्तु उनका अपने पुत्रों पर वश नहीं था। पुत्रों के प्रति अतिशय मोह ने उन्हें विवश कर दिया था और वे केवल दुर्योधन के हाथ की कठपुतली रह गये थे।
|