श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
35. साम्ब-विवाह
'दुर्योधन पुत्री लक्ष्मणा के स्वयंवर में साम्ब गये थे।' देवर्षि ने दाशार्ही राजसभा में ही समाचार दिया- 'उन्होंने स्वयंवर सभा में कन्या-हरण किया और उसे रथ पर बैठाकर चल पड़े।' 'दुर्योधन का सौभाग्य। इतना सुन्दर, शूर जामाता उसे मिला। साम्ब ने उसे श्रीकृष्णचन्द्र का सम्बन्धी बना दिया।' महाराज उग्रसेन ने कहा। 'लेकिन कौरवों ने इसे अपना अपमान माना।' 'कौरव इतना साहस करने लगे हैं।' महाराज उग्रसेन अत्यन्त क्रोध से गरज उठे- 'महासेनापति अनाधृष्ट! सात्यकि! कृतवर्मा! मैं स्वयं चल रहा हूँ। इन सर्पों का फण सदा के लिए कुचल देना। यादव-वाहिनी आज ही प्रस्थान करेंगी।' 'महाराज को कष्ट करने की आवश्यकता नहीं है।' श्रीकृष्णचन्द्र उठे खड़े हुए- 'मैं जा रहा हूँ यादव शूरों के साथ। मदान्ध धृतराष्ट्र -पुत्रों की सुर भी यदि सहायता करें तो भी उन्हें मरना पड़ेगा।' 'कौरवों से भूल हो गयी महाराज।' 'यह आपके शिष्य की शिष्टता है?' सात्यकि ने व्यंग किया। 'वह एक ही भाषा समझता है- धनुष की भाषा और उसे हम इस बार इसी भाषा में भली प्रकार समझा देने वाले हैं।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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