श्रीकृष्ण गीतावली
3. उलूखल-बन्धन
राग केदारा
(तीसरी सखी बोली-) हाय, हाय! अरी महरि! यह बालक (नादान) है। क्या क्रोध के वश हो रही है? अपनी कोख के जाये पर कितना भारी गुस्सा किया है? रस्सी ढ़ीली कर दे अरी पगली! इस साँवरे-सलोने को तो देख। यह सकुच और सहम गया है, बच्चा बड़े भारी भय से भीत हो रहा है।। 1 ।। जब से इन हलधर (बलराम) और हरि (श्याम) ने जन्म लिया है, तब से (तेरे घर) दूध, दही मक्खन (ही नहीं), लाखों गायें तथा अन्य प्रकार का धन हो गया है। अरी, बच्चा ही तो है (क्या हुआ जो) उसने थोड़ा- सा खा लिया या (बंदरों को) खिला दिया, खराब कर दिया अथवा गिरा दिया। ऐसे (सुन्दर) पुत्र पर क्रोध? तेरा कैसा (वज्र का) हृदय है ! ।। 2 ।। मुनि (गर्ग जी) तो कह गये हैं कि नन्द और यशोदा के समान पुण्यवान (जगत में) न हुआ न होगा और न वर्तमान में ही दूसरा कोई है। जाने किस तप, किस योग, यज्ञ अथवा जप के फलस्वरूप (औढरदानी) श्रीमहादेव जी ने तुझे कन्हैया-जैसा पुत्र दिया है।। 3 ।। इन्हीं (भाग्यशाली नीलमणि) के पधारने से (आज) व्रज में नित्य नयी बधाइयाँ बजती हैं, सबकी उन्नति हो रही है, सभी लोग सुखपूर्वक जीवन-यापन कर रहे हैं। इस बालक नन्दलाल का यश ही तो संतों (भक्तों) और देवताओं का सर्वस्व है। तुलसीदास जी कहते हैं कि मैंने भी इसका गान करके अमृतरस का पान किया है।। 4 ।। |
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