श्रीकृष्ण गीतावली
8. गोपी-विरह
राग मलार
(42) भ्रमर! तुमने श्रीकृष्ण की ही कही हुई बातें क्यों नही कहीं? ये सब बातें तो उस चंचल दासी (कुब्जा) की हैं, जो अत्यन्त कठोर है।। 1 ।। (भला, कन्हैया ने) कब (कितने दिन हुए) व्रज छोड़ा? उन्हें (इतने ही थोड़े समय में) कब ज्ञान हो गया और कब उन्होंने विदेहता प्राप्त कर ली? (अभी कल तक तो हमारे साथ प्रेम-लीला की है,) जो (अकस्मात) गोकुल की (प्रीति की) रीति को भूल गये और अब निगुर्ण की चाल पकड़ ली? ।। 2 ।। (अस्तु) तुम आज्ञा दो, हम सिर चढ़ाकर उसी का पालन करें। हमने तो (सदा ही) प्रेम की मर्यादा का पालन किया है (उसके सुख मेंं ही सुख माना है)। तुलसीदास जी के शब्दों में गोपियाँ कहती हैं कि हम अबलाओं ने सब कुछ सहा है, परंतु परमेश्वर इसे नहीं सहेगा ।। 3 ।। |
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