(16)
हा हा री महरि! बारो, कहा रिस बस भई,
कोखि के जाए सों रोषु केतो बड़ो कियो है।
ढीली करि दाँवरी, बावरी! साँवरेहि देखि,
सकुचि सहमि सिसु भारी भय भियो है।। 1 ।।
दूध दधि माखन भो, लाखन गोधन धन
जब ते जनम हलधर हरि लियो है।
खायो, कै खवायो, कै बिगार्यो, ढार्यो लरिका री,
ऐस सुत पर कोह, कैसो तेरो हियो है? ।। 2 ।।
मुनि कहैं सुकृती न नंद जसुमति सम
न भयो, न भावी, नहीं विद्यमान बियो है।
कौन जानै कौनें तप, कौनें जाग जाग जप
कान्ह सो सुवन तोको महादेव दियो है।। 3 ।।
इन्हही के आए ते बधाए ब्रज नित नए
नादत बाढ़त सब सब सुख जियो है।
नंदलाल बाल जस संत सुर सरबस
गाइ सो अमिय रस तुलसिहुँ पियो है।। 4 ।।
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