श्रीकृष्ण गीतावली
4. इन्द्रकोप-गोवर्धन-धारण
राग मलार
(18) व्रज पर गर्व के साथ (नष्ट करने की धमकी के रूप में घोर गर्जना करते हुए) बादल छा गये। देवराज इन्द्र ने (यज्ञ बन्द कर दिये जाने पर) अपना अत्यन्त अपमान समझकर इनको क्रोध करके भेजा था ।। 1 ।। दसों दिशाओं में दुःसह बिजली चमकने लगी। आकाश में घोर अन्धकार छा गया। बादल भयंकर गर्जना करने लगे और प्रबल पवन से प्रेरित होकर (इधर-उधर) दौड़ने लगे ।। 2 ।। बार-बार बिजली गिरने लगी। बादल ओले तथा बड़ी-बड़ी (भयावनी) बूँदे बरसाने लगे। गौएँ, बछड़े या गोप-बालक, गोपियाँ तथा ग्वाले सर्दी से भयभीत होकर आर्त पुकार करने लगे ।। 3 ।। ओ बलराम, अरे श्रीकृष्ण! रक्षा करो। इस समय हम पर असह्य विपति आ पड़ी है। नन्दबाबा ने जो देवराज इन्द्र का विरोध किया था, वह तुम्हारे ही बल पर किया था? ।। 4 ।। इस (आर्त पुकार) को सुनकर नन्द का शेर हँसा, उठकर खड़ा हो गया और (उसने एक ही) हाथ से पहाड़ को उठा लिया। तुलसीदास जी कहते हैं कि इन्द्र अपनी-सी करके (अपने बल-बूते का असफल परिचय देकर) सारा गर्व खोकर लौट गया ।। 5 ।। |
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