(13)
छाँडो मेरे ललन! ललित लरिकाई।
ऐहैं सुत! देखुवार कालि तेरे,
बबै ब्याह की बात चलाई
डरिहैं सासु ससुर चोरी सुनि,
हँसिहैं नइ दुलहिया सुहाई।
उबटौं न्हाहुए गुहौं चुटिया बलि,
देखि भलो बर करिहिं बड़ाई।। 2 ।।
मातु कह्यो करि कहत बोलि दै,
'भइ बड़ि बार, कालि तौ न आई'।
'जब सोइबो तात' यों 'हाँ' कहि,
नयन मीचि रहे पौढ़ि कन्हाई।। 3 ।।
उठि कहो, भोर भयो, झँगुली दै,
मुदित महरि लखि आतुरताई।
बिहँसी ग्वालि जानि तुलसी प्रभु,
सकुचि लगे जननी उर धाई।। 4 ।।
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