यमराज का नचिकेता से गोदान की महिमा का वर्णन

महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 71 में यमराज का नाचिकेत से गोदान की महिमा का वर्णन हुआ है[1]-

भीष्म का संवाद

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ‘उनके ऐसा कहने पर नाचिकेत ने इस प्रकार उत्तर दिया- ‘भगवन। मैं आपके उस राज्य में आ गया हूं, जहाँ से लौटकर जाना अत्यंत कठिन है। यदि मैं आपकी दृष्टि में वर पाने के योग्य होऊं तो पुण्यात्मा पुरुषों को मिलने वाले समृद्धिशाली लोको का मैं दर्शन करना चाहता हूँ। ‘द्धिजेन्द्र। तब यम देवता ने वाहनो से जुते हुए उत्तम प्रकाश से युक्त तेजस्वी रथ पर मुझे बिठाकर पुण्यात्माओं को प्राप्त होने वाले अपने यहाँ के सभी लोकों का मुझे दर्शन कराया। ‘तब मैंने महा मनस्वी पुरुषो को प्राप्त होने वाले वहाँ की तेजोमय भवनो का दर्शन किया। उनके रुप-रंग और आकार-प्रकार अनेक तरह के थे। उन भवनो का सब प्रकार के रत्नो द्वारा निर्माण किया गया था। ‘कोई चन्द्रमण्डल के समान उज्ज्वल थे। किन्हीं पर क्षुद्र घंटियो से युक्त झालरें लगी थीं। उनमें सैंकड़ों कक्षाएं और मंजिले थीं। उनके भीतर जलाशय और वन-उपवन सुशोभित थे। कितनो का प्रकाश नीलमणिमय सूर्य के समान था। कितने ही चांदी और सोने के बने हुए थे। किन्ही-किन्ही भवनो के रंग प्रातः कालीन सूर्य के समान लाल थे। उनमें से कुछ विमान या भवन तो स्थावर थे औेर कुछ इच्छानुसार विचरने वाले थे। ‘उन भवनो में भक्ष्य और भोज्य पदार्थों के पर्वत खड़े थे। वस्त्रो और शैय्याओं के ढेर लगे थे तथा सम्पूर्ण मनोवांछित फलों को देने वाले बहुत-से वृक्ष उन गृहों की सीमा के भीतर लहालहा रहे थे। ‘उन दिव्य लोकों में बहुत-सी नदियां, गलियां, सभाभवन, बावड़ियां, तालाब और जोतकर तैयार खडे़ हुए घोषयुक्त सहस्रों रथ मैंने सब और देखे थे। ‘मैंने दूध बहाने वाली नदियां, पर्वत, घी और निर्मल जल भी देखे तथा यमराज की अनुमति से और भी बहुत-से पहले के न देखे हुए प्रदेशों का दर्शन किया। ‘उन सब को देखकर मैंने प्रभावशाली पुरातन देवता धर्मराज से कहा- ‘प्रभो। ये जो घी और दूध की नदियां बहती रहती हैं, जिनका स्त्रोत कभी सूखता नहीं है, किनके उपभोग में आती हैं- इन्हें किन का भोजन नियत किया गया है?’

यमराज का नचिकेता से गोदान की महिमा का वर्णन

‘यमराज ने कहा- ब्रह्मन। तुम इन नदियों को उन श्रेष्ठ पुरुषों का भोजन समझो, जो गौरस दान करने वाले हैं। जो गोदान में तत्पर हैं, उन पुण्यात्माओं के दूसरे भी सनातन लोग विद्यमान हैं, जिनके दुःख-शोक से रहित पुण्यात्मा भरे पड़े हैं। ‘‘विप्रवर। केवल इनका दान मात्र ही प्रषस्त नहीं है; सुपात्र ब्राह्मण, उत्तम समय, विषिष्ठ गौ तथा दान की सर्वोत्तम विधि- इन सब बातों को जानकर ही गोदान करना चाहिये। गौओं का आपस में जो तारतम्य है, उसे जानना बहुत कठिन काम है और अग्नि एवं सूर्य के समान तेजस्वी पात्र को पहचानना भी सरल नहीं है। ‘‘जो ब्राह्मण वेदों के स्वाध्याय से सम्पन्न, अत्यन्त तपस्वी तथा यज्ञ के अनुष्ठान में लगा हुआ हो, वही इन गौओं के दान का सर्वोत्तम पात्र है। इनके सिवा जो ब्राह्मण कृच्छ्र व्रत से मुक्त हुए हों और परिवार की पुष्टि के लिये गोदान के प्रार्थी होकर आये हों, वे भी दान के उत्तम पात्र हैं। इन सुयोग्य पात्रों को निमित्त बनाकर दान में दी गयी श्रेष्ठ गौऐं उत्तम मानी गयी हैं।‘‘ तीन रात तक उपवास पूर्वक केवल जल पीकर धरती पर शयन करें। तत्पश्‍चात खिला-पिलाकर तृप्त की हुई गौओं का भोजन आदि से संतुष्ट किये हुए ब्राह्मणों को दान करें। वे गौऐं बछड़ों के साथ रहकर प्रसन्न हों, सुन्दर बच्चे देने वाली हों तथा अन्यान्य आवश्‍यक सामग्रियों से युक्त हों। ऐसी गौओं का दान करके तीन दिनों तक केवल गौरस का आहार करके रहना चाहिये। ‘‘उत्तम शील- स्वभाव वाली, भले बछड़े वाली और भाग कर न जाने वाली दुधारू गाय का कांस्य के दुग्ध पात्र सहित दान करके उस गौ के शरीर में जितने रोये होते हैं उतने वर्षों तक दाता स्वर्गलोक का सुख भोगता है। ‘‘इसी प्रकार जो शिक्षा लेकर काबू में किये हुए, बोझ ढोने में समर्थ, बलवान, जवान, कृषक- समुदाय की जीविका चलाने योग्य, पराक्रमी और विशाल डील-डौल वाले बैल का ब्राह्मणों को दान देता है, वह दुधारू गाय का दान करने वाले के तुल्य ही उत्तम लोकों का उपभोग करता है। जो गौओं के प्रति क्षमाशील, उनकी रक्षा करने में समर्थ, कृतज्ञ और आजीविका से रहित है, ऐसे ब्राह्मण को गोदान का उत्तम पात्र बताया गया है। जो बूढ़ा हो, रोगी होने के कारण पथ्य-भोजन चाहता हो, दुर्भिक्ष आदि के कारण घवराया हो, किसी महान यज्ञ का अनुष्ठान करने वाला हो या जिसके लिये खेती की आवश्‍यकता पड़ी हो, होम के लिये हविष्य प्राप्त करने की इच्छा हो अथवा घर में स्त्री के बच्चा पैदा होने वाला हो अथवा गुरु के लिये दक्षणा देनी हो अथवा बालक की पुष्टि के लिये गौ दुग्ध की आवश्‍यकता आ पड़ी हो, ऐसे व्यक्तियों को ऐसे अवसरों पर गोदान के लिये सामान्य देश-काल माना गया है।[2] जिन गौओं का विशेष भेद जाना हुआ हो, जो खरीद कर लायी गयी हों अथवा ज्ञान के पुरस्कार से प्राप्त हुई हों अथवा प्राणियों के अदला-बदली से खरीदी गयी हों या जीत कर लायी गयी हों अथवा दहेज में मिली हों, ऐसी गौऐं दान के लिये उत्तम मानी गयी हैं’’।

नाचिकेत कहता है- वैवस्वत यम की बात सुनकर मैंने पुनः उनसे पूछा- ‘भगवन। यदि अभाव वश गोदान न किया जा सके तो गोदान करने वालों को ही मिलने वाले लोकों में मनुष्य कैसे जा सकता है?’ तदनन्तर बुद्धिमान यमराज ने गोदान सम्बन्धी गति तथा गोदान के समान फल देने वाले दान का वर्णन किया, जिसके अनुसार बिना गाय के भी लोग गोदान करने वाले हो सकते हैं? ‘जो गौओं के अभाव में संयम-नियम से युक्त हों घृत धेनु को दान करता है, उसके लिये ये घृत वाहिनी नदियां वत्सला गौओं की भाँति घृत बहाती हैं।[3]घी के अभाव में जो व्रत-नियम से युक्त हो तिलमयी धेनु को दान करता है, वह उस धेनु के द्वारा संकट से उद्धार पाकर दूध की नदी में आनन्दित होता है। ‘तिल के अभाव में जो व्रतशील एवं नियमनिष्ट होकर जलमयी धेनु का दान करता है, वह अभीष्ट वस्तुओं को बहाने वाली इस शीतल नदी के निकट रहकर सुख भोगता है’। धर्म से कभी च्युत न होने वाले पूज्य पिता जी। इन प्रकार धर्मराज ने मुझे वहाँ यह सब स्थान दिखाये। वह सब देखकर मुझे बड़ा हर्ष प्राप्त हुआ। तात। मैं आपके लिये यह प्रिय वृतान्त निवेदन करता हूँ कि मैंने वहाँ थोड़े-से ही धन से सिद्व होने वाला यह गोदान रूप महान यज्ञ प्राप्त किया है। वह यहाँ वेदविधि के अनुसार मुझसे प्रकट होकर सवत्र प्रचलित होगा। आपके द्वारा मुझे जो श्राप मिला, वह वास्तम में मुझपर अनुग्रह के लिये ही प्राप्त हुआ था, जिससे मैंने यमलोक में जाकर वहाँ यमराज को देखा। महात्मन। वहाँ दान के फल को प्रत्यक्ष देकर मैं संदेह रहित दान धर्मों का अनुष्ठान करूंगा। महर्षे। धर्मराज ने बारंबार प्रसन्न होकर मुझसे यह भी कहा था कि ‘जो लोग दान से सदा पवित्र होना चाहें’ वे विशेष रूप से गोदान करें। ‘मुनिकुमार। धर्म निर्दोष विषय है। तुम धर्म की अवहेलना न करना। उत्तम देश, काल प्राप्त होने पर सुपात्र को दान देते रहने चाहिये। अतः तुम्हें सदा ही गोदान करचा उचित है। इस विषय में तुम्हारे भीतर कोई संदेह नहीं होना चाहिये। ‘पूर्वकाल में शांत चित्त वाले पुरुषों ने दान के मार्ग में स्थित हो नित्य ही गौओं का दान किया था। वे अपनी उग्र तपस्या के विषय में संदेह न रखते हुए भी यथाशक्ति दान दान देते ही रहते थे। ‘कितने ही शुद्ध चित्त, श्रद्धालु एवं पुण्यात्मा पुरुष ईर्ष्या का त्याग करके समय पर यथाशक्ति गोदान करके परलोक में पहुँचकर अपने पुण्यमय शील-स्वभाव के कारण स्वर्गलोक में प्रकाशित होते हैं। ‘न्यायपूर्वक उपार्जित के किये हुए इस गोधन का ब्राह्मणों को दान करना चाहिये तथा पात्र की परीक्षा करके सुपात्र को दी हुई गाय उसके घर पहुँचा देना चाहिये और किसी भी शुभ अष्टमी से आरम्भ करके दस दिनों तक मनुष्य को, गौरस, गोबर अथवा गौमूत्र का आहार करके रहना चाहिये। ‘एक बैल का दान करने से मनुष्य देवताओं का सेवक होता है। दो बैलों का दान करने पर उसे वेद विद्या की प्राप्ति होती है। उन बैलों से जुते हुए छकड़े का दान करने से तीर्थ सेवन का फल प्राप्त होता है और कपिला गाय के दान से समस्त पापों का परित्याग हो जाता है। ‘मनुष्य न्यायतः प्राप्त हुई एक भी कपिला गाय का दान करके सभी पापों से मुक्त हो जाता है। गौरस से बढ़कर दूसरी कोई वस्तु नहीं है; इसलिये विद्वान पुरुष गोदान का महादान बतलाते हैं। गौऐं दूध देकर सम्पूर्ण लोकों का भूख के कष्ट से उद्धार करती हैं। ये लोक में सब के लिये अन्न पैदा करती हैं। इस बात को जानकर भी जो गौंओं के प्रति सौहार्द का भाव नहीं रखता वह पाप आत्मा मनुष्य नरक में पड़ता है।[4]

‘जो मनुष्य किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को सहस्र, शत, दस अथवा पांच गौओं का उनके अच्छे बछड़ों सहित दान करता है अथवा एक ही गाय देता है, उसके लिये वह गौ परलोक में पवित्र तीर्थों वाली नदी बन जाती है। ‘प्राप्ति, पुष्टि तथा लोक रक्षा करने के द्वारा गौऐं इस पृथ्वी पर सूर्य की किरणों के समान मानी गयी हैं। एक ही ‘गो’ शब्द धेनु और सूर्य-किरणों का बोधक है। गौओं से ही संतति और उपभोग प्राप्त होते हैं; अतः गोदान करने वाला मनुष्य किरणों का दान करने वाले सूर्य के ही समान माना जाता है। ‘शिष्य जब गोदान करने लगे, तब उसे ग्रहण करने के लिये गुरु को चुने। यदि गुरु ने वह गोदान स्वीकार कर लिया तो शिष्य निश्‍चय ही स्वर्गलोक में जाता है। विधि के जानने वाले पुरुषों के लिये यह गोदान महान धर्म है। अन्य सब विधियां इस विधि में ही अन्तर्भूत हो जाती हैं। ‘तुम न्याय के अनुसार गोधन प्राप्त करके पात्र की परीक्षा करने के पश्चात श्रेष्ठ ब्राह्मणों को उनका दान कर देना और दी हुई वस्तुओं को ब्राह्मण के घर पहुँचा देना। तुम पुण्यात्मा का पुण्य कार्य में प्रवृत रहने वाले हो; अतः देवता, मनुष्य तथा हम लोग तुमसे ही धर्म की ही आशा रखते हैं’। ब्रह्मर्षें। धर्मराज के ऐसा कहने पर मैंने उन धर्मात्मा देवता को मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और फिर उनकी आज्ञा लेकर मैं आपके चरणों के समीप लौट आया।[5]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 71 श्लोक 17-30
  2. ऐसे समय में देश-काल का विचार नहीं करना चाहिये
  3. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 71 श्लोक 31-39
  4. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 71 श्लोक 40-52
  5. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 71 श्लोक 53-55

संबंधित लेख

महाभारत अनुशासन पर्व में उल्लेखित कथाएँ


दान-धर्म-पर्व
युधिष्ठिर की भीष्म से उपदेश देने की प्रार्थना | भीष्म द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और काल के संवाद का वर्णन | प्रजापति मनु के वंश का वर्णन | अग्निपुत्र सुदर्शन की मृत्यु पर विजय | विश्वामित्र को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति विषयक युधिष्ठिर का प्रश्न | अजमीढ के वंश का वर्णन | विश्वामित्र के जन्म की कथा | विश्वामित्र के पुत्रों के नाम | इन्द्र और तोते का स्वामिभक्त एवं दयालु पुरुष की श्रेष्ठता विषयक संवाद | दैव की अपेक्षा पुरुषार्थ की श्रेष्ठता का वर्णन | कर्मों के फल का वर्णन | श्रेष्ठ ब्राह्मणों की महिमा | ब्राह्मण विषयक सियार और वानर के संवाद का वर्णन | शूद्र और तपस्वी ब्राह्मण की कथा | लक्ष्मी के निवास करने और न करने योग्य पुरुष, स्त्री और स्थानों का वर्णन | भीष्म का युधिष्ठिर से कृतघ्न की गति और प्रायश्चित का वर्णन | स्त्री-पुरुष का संयोग विषयक भंगास्वन का उपाख्यान | भीष्म का शरीर, वाणी और मन से होने वाले पापों के परित्याग का उपदेश | भीष्म का श्रीकृष्ण से महादेव का माहात्म्य बताने का अनुरोध | श्रीकृष्ण द्वारा महात्मा उपमन्यु के आश्रम का वर्णन | उपमन्यु का शिव विषयक आख्यान | उपमन्यु द्वारा महादेव की तपस्या | उपमन्यु द्वारा महादेव की स्तुति | उपमन्यु को महादेव का वरदान | श्रीकृष्ण को शिव-पार्वती का दर्शन | शिव और पार्वती का श्रीकृष्ण को वरदान | महात्मा तण्डि द्वारा महादेव की स्तुति और प्रार्थना | महात्मा तण्डि को महादेव का वरदान | उपमन्यु द्वारा शिवसहस्रनामस्तोत्र का वर्णन | शिवसहस्रनामस्तोत्र पाठ का फल | ऋषियों का शिव की कृपा विषयक अपने-अपने अनुभव सुनाना | श्रीकृष्ण द्वारा शिव की महिमा का वर्णन | अष्टावक्र मुनि का उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान | कुबेर द्वारा अष्टावक्र का स्वागत-सत्कार | अष्टावक्र का स्त्रीरूपधारिणी उत्तर दिशा के साथ संवाद | अष्टावक्र का वदान्य ऋषि की कन्या से विवाह | युधिष्ठिर के विविध धर्मयुक्त प्रश्नों का उत्तर | श्राद्ध और दान के उत्तम पात्रों का लक्षण | देवता और पितरों के कार्य में आमन्त्रण देने योग्य पात्रों का वर्णन | नरकगामी और स्वर्गगामी मनुष्यों के लक्षणों का वर्णन | ब्रह्महत्या के समान पापों का निरूपण | विभिन्न तीर्थों के माहात्मय का वर्णन | गंगाजी के माहात्म्य का वर्णन | ब्राह्मणत्व हेतु तपस्यारत मतंग की इन्द्र से बातचीत | इन्द्र द्वारा मतंग को समझाना | मतंग की तपस्या और इन्द्र का उसे वरदान | वीतहव्य के पुत्रों से काशी नरेशों का युद्ध | प्रतर्दन द्वारा वीतहव्य के पुत्रों का वध | वीतहव्य को ब्राह्मणत्व प्राप्ति की कथा | नारद द्वारा पूजनीय पुरुषों के लक्षण | नारद द्वारा पूजनीय पुरुषों के आदर-सत्कार से होने वाले लाभ का वर्णन | वृषदर्भ द्वारा शरणागत कपोत की रक्षा | वृषदर्भ को पुण्य के प्रभाव से अक्षयलोक की प्राप्ति | भीष्म द्वारा यूधिष्ठिर से ब्राह्मण के महत्त्व का वर्णन | भीष्म द्वारा श्रेष्ठ ब्राह्मणों की प्रशंसा | ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन | ब्राह्मण प्रशंसा विषयक इन्द्र और शम्बरासुर का संवाद | दानपात्र की परीक्षा | पंचचूड़ा अप्सरा का नारद से स्त्री दोषों का वर्णन | युधिष्ठिर के स्त्रियों की रक्षा के विषय में प्रश्न | भृगुवंशी विपुल द्वारा योगबल से गुरुपत्नी की रक्षा | विपुल का देवराज इन्द्र से गुरुपत्नी को बचाना | विपुल को गुरु देवशर्मा से वरदान की प्राप्ति | विपुल को दिव्य पुष्प की प्राप्ति और चम्पा नगरी को प्रस्थान | विपुल का अपने द्वारा किये गये दुष्कर्म का स्मरण करना | देवशर्मा का विपुल को निर्दोष बताकर समझाना | भीष्म का युधिष्ठिर को स्त्रियों की रक्षा हेतु आदेश | कन्या विवाह के सम्बंध में पात्र विषयक विभिन्न विचार | कन्या के विवाह तथा कन्या और दौहित्र आदि के उत्तराधिकार का विचार | स्त्रियों के वस्त्राभूषणों से सत्कार करने की आवश्यकता का प्रतिपादन | ब्राह्मण आदि वर्णों की दायभाग विधि का वर्णन | वर्णसंकर संतानों की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन | नाना प्रकार के पुत्रों का वर्णन | गौओं की महिमा के प्रसंग में च्यवन मुनि के उपाख्यान का प्रारम्भ | च्यवन मुनि का मत्स्यों के साथ जाल में फँसना | नहुष का एक गौ के मोल पर च्यवन मुनि को खरीदना | च्यवन मुनि द्वारा गौओं का माहात्म्य कथन | च्यवन मुनि द्वारा मत्स्यों और मल्लाहों की सद्गति | राजा कुशिक और उनकी रानी द्वारा महर्षि च्यवन की सेवा | च्यवन मुनि द्वारा राजा कुशिक और उनकी रानी के धैर्य की परीक्षा | च्यवन मुनि का राजा कुशिक और उनकी रानी की सेवा से प्रसन्न होना | च्यवन मुनि के प्रभाव से राजा कुशिक और उनकी रानी को आश्चर्यमय दृश्यों का दर्शन | च्यवन मुनि का राजा कुशिक से वर माँगने के लिए कहना | च्यवन मुनि का राजा कुशिक के यहाँ अपने निवास का कारण बताना | च्यवन मुनि द्वारा राजा कुशिक को वरदान | च्यवन मुनि द्वारा भृगुवंशी और कुशिकवंशियों के सम्बंध का कारण बताना | विविध प्रकार के तप और दानों का फल | जलाशय बनाने तथा बगीचे लगाने का फल | भीष्म द्वारा उत्तम दान तथा उत्तम ब्राह्मणों की प्रशंसा | भीष्म द्वारा उत्तम ब्राह्मणों के सत्कार का उपदेश | श्रेष्ठ, अयाचक, धर्मात्मा, निर्धन और गुणवान को दान देने का विशेष फल | राजा के लिए यज्ञ, दान और ब्राह्मण आदि प्रजा की रक्षा का उपदेश | भूमिदान का महत्त्व | भूमिदान विषयक इन्द्र और बृहस्पति का संवाद | अन्न दान का विशेष माहात्म्य | विभिन्न नक्षत्रों के योग में भिन्न-भिन्न वस्तुओं के दान का माहात्म्य | सुवर्ण और जल आदि विभिन्न वस्तुओं के दान की महिमा | जूता, शकट, तिल, भूमि, गौ और अन्न के दान का माहात्म्य | अन्न और जल के दान की महिमा | तिल, जल, दीप तथा रत्न आदि के दान का माहात्म्य | गोदान की महिमा | गौओं और ब्राह्मणों की रक्षा से पुण्य की प्राप्ति | राजा नृग का उपाख्यान | पिता के शाप से नचिकेता का यमराज के पास जाना | यमराज का नचिकेता से गोदान की महिमा का वर्णन | गोलोक तथा गोदान विषयक युधिष्ठिर और इन्द्र के प्रश्न | ब्रह्मा का इन्द्र को गोलोक की महिमा बताना | ब्रह्मा का इन्द्र को गोदान की महिमा बताना | दूसरे की गाय को चुराने और बेचने के दोष तथा गोहत्या के परिणाम | गोदान एवं स्वर्ण दक्षिणा का माहात्म्य | व्रत, नियम, ब्रह्मचर्य, माता-पिता और गुरु आदि की सेवा का महत्त्व | गोदान की विधि और गौओं से प्रार्थना | गोदान करने वाले नरेशों के नाम | कपिला गौओं की उत्पत्ति | कपिला गौओं की महिमा का वर्णन | वसिष्ठ का सौदास को गोदान की विधि और महिमा बताना | गौओं को तपस्या द्वारा अभीष्ट वर की प्राप्ति | विभिन्न गौओं के दान से विभिन्न उत्तम लोकों की प्राप्ति | गौओं तथा गोदान की महिमा | व्यास का शुकदेव से गौओं की महत्ता का वर्णन | व्यास द्वारा गोलोक की महिमा का वर्णन | व्यास द्वारा गोदान की महिमा का वर्णन | लक्ष्मी और गौओं का संवाद | गौओं द्वारा लक्ष्मी को गोबर और गोमूत्र में स्थान देना | ब्रह्मा का इन्द्र को गोलोक और गौओं का उत्कर्ष बताना | ब्रह्मा का गौओं को वरदान देना | भीष्म का पिता शान्तनु को कुश पर पिण्ड देना | सुवर्ण की उत्पत्ति और उसके दान की महिमा | पार्वती का देवताओं को शाप | तारकासुर के भय से देवताओं का ब्रह्मा की शरण में जाना | ब्रह्मा का देवताओं को आश्वासन | देवताओं द्वारा अग्नि की खोज | गंगा का शिवतेज को धारण करना और फिर मेरुपर्वत पर छोड़ना | कार्तिकेय और सुवर्ण की उत्पत्ति | महादेव के यज्ञ में अग्नि से प्रजापतियों और सुवर्ण की उत्पत्ति | कार्तिकेय की उत्पत्ति और उनका पालन-पोषण | कार्तिकेय का देवसेनापति पद पर अभिषेक और तारकासुर का वध | विविध तिथियों में श्राद्ध करने का फल | श्राद्ध में पितरों के तृप्ति विषय का वर्णन | विभिन्न नक्षत्रों में श्राद्ध करने का फल | पंक्तिदूषक ब्राह्मणों का वर्णन | पंक्तिपावन ब्राह्मणों का वर्णन | श्राद्ध में मूर्ख ब्राह्मण की अपेक्षा वेदवेत्ता को भोजन कराने की श्रेष्ठता | निमि का पुत्र के निमित्त पिण्डदान | श्राद्ध के विषय में निमि को अत्रि का उपदेश | विश्वेदेवों के नाम तथा श्राद्ध में त्याज्य वस्तुओं का वर्णन | पितर और देवताओं का श्राद्धान्न से अजीर्ण होकर ब्रह्मा के पास जाना | श्राद्ध से तृप्त हुए पितरों का आशीर्वाद | भीष्म का युधिष्ठिर को गृहस्थ के धर्मों का रहस्य बताना | वृषादर्भि तथा सप्तर्षियों की कथा | भिक्षुरूपधरी इन्द्र द्वारा कृत्या का वध तथा सप्तर्षियों की रक्षा | इन्द्र द्वारा कमलों की चोरी तथा धर्मपालन का संकेत | अगस्त्य के कमलों की चोरी तथा ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों की धर्मोपदेशपूर्ण शपथ | इन्द्र का चुराये हुए कमलों को वापस देना | सूर्य की प्रचण्ड धूप से रेणुका के मस्तक और पैरों का संतप्त होना | जमदग्नि का सूर्य पर कुपित होना | छत्र और उपानह की उत्पत्ति एवं दान की प्रशंसा | गृहस्थधर्म तथा पंचयज्ञ विषयक पृथ्वीदेवी और श्रीकृष्ण का संवाद | तपस्वी सुवर्ण और मनु का संवाद | नहुष का ऋषियों पर अत्याचार | महर्षि भृगु और अगस्त्य का वार्तालाप | नहुष का पतन | शतक्रतु का इन्द्रपद पर अभिषेक तथा दीपदान की महिमा | ब्राह्मण के धन का अपहरण विषयक क्षत्रिय और चांडाल का संवाद | ब्रह्मस्व की रक्षा में प्राणोत्सर्ग से चांडाल को मोक्ष की प्राप्ति | धृतराष्ट्ररूपधारी इन्द्र और गौतम ब्राह्मण का संवाद | ब्रह्मा और भगीरथ का संवाद | आयु की वृद्धि और क्षय करने वाले शुभाशुभ कर्मों का वर्णन | गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों का विस्तारपूर्वक निरूपण | बड़े और छोटे भाई के पारस्परिक बर्ताव का वर्णन | माता-पिता, आचार्य आदि गुरुजनों के गौरव का वर्णन | मास, पक्ष एवं तिथि सम्बंधी विभिन्न व्रतोपवास के फल का वर्णन | दरिद्रों के लिए यज्ञतुल्य फल देने वाले उपवास-व्रत तथा उसके फल का वर्णन | मानस तथा पार्थिव तीर्थ की महत्ता | द्वादशी तिथि को उपवास तथा विष्णु की पूजा का माहात्म्य | मार्गशीर्ष मास में चन्द्र व्रत करने का प्रतिपादन | बृहस्पति और युधिष्ठिर का संवाद | विभिन्न पापों के फलस्वरूप नरकादि की प्राप्ति एवं तिर्यग्योनियों में जन्म लेने का वर्णन | पाप से छूटने के उपाय तथा अन्नदान की विशेष महिमा | बृहस्पति का युधिष्ठिर को अहिंसा एवं धर्म की महिमा बताना | हिंसा और मांसभक्षण की घोर निन्दा | मद्य और मांस भक्षण के दोष तथा उनके त्याग की महिमा | मांस न खाने से लाभ तथा अहिंसाधर्म की प्रशंसा | द्वैपायन व्यास और एक कीड़े का वृत्तान्त | कीड़े का क्षत्रिय योनि में जन्म तथा व्यासजी का दर्शन | कीड़े का ब्राह्मण योनि में जन्म तथा सनातनब्रह्म की प्राप्ति | दान की प्रशंसा और कर्म का रहस्य | विद्वान एवं सदाचारी ब्राह्मण को अन्नदान की प्रशंसा | तप की प्रशंसा तथा गृहस्थ के उत्तम कर्तव्य का निर्देश | पतिव्रता स्त्रियों के कर्तव्य का वर्णन | नारद का पुण्डरीक को भगवान नारायण की आराधना का उपदेश | ब्राह्मण और राक्षस का सामगुण विषयक वृत्तान्त | श्राद्ध के विषय में देवदूत और पितरों का संवाद | पापों से छूटने के विषय में महर्षि विद्युत्प्रभ और इन्द्र का संवाद | धर्म के विषय में इन्द्र और बृहस्पति का संवाद | वृषोत्सर्ग आदि के विषय में देवताओं, ऋषियों और पितरों का संवाद | विष्णु, देवगण, विश्वामित्र और ब्रह्मा आदि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन | अग्नि, लक्ष्मी, अंगिरा, गार्ग्य, धौम्य तथा जमदग्नि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन | वायु द्वारा धर्माधर्म के रहस्य का वर्णन | लोमश द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन | अरुन्धती, धर्मराज और चित्रगुप्त द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन | प्रमथगणों द्वारा धर्माधर्म सम्बन्धी रहस्य का कथन | दिग्गजों का धर्म सम्बन्धी रहस्य एवं प्रभाव | महादेव जी का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन | स्कन्ददेव का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन | भगवान विष्णु और भीष्म द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्यों के माहात्म्य का वर्णन | जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्यों का वर्णन | दान लेने और अनुचित भोजन करने का प्रायश्चित | दान से स्वर्गलोक में जाने वाले राजाओं का वर्णन | पाँच प्रकार के दानों का वर्णन | तपस्वी श्रीकृष्ण के पास ऋषियों का आना | ऋषियों का श्रीकृष्ण का प्रभाव देखना और उनसे वार्तालाप करना | नारद द्वारा हिमालय पर शिव की शोभा का विस्तृत वर्णन | शिव के तीसरे नेत्र से हिमालय का भस्म होना | शिव-पार्वती के धर्म-विषयक संवाद की उत्थापना | वर्णाश्रम सम्बन्धी आचार | प्रवृत्ति-निवृत्तिरूप धर्म का निरूपण | वानप्रस्थ धर्म तथा उसके पालन की विधि और महिमा | ब्राह्मणादि वर्णों की प्राप्ति में शुभाशुभ कर्मों की प्रधानता का वर्णन | बन्धन मुक्ति, स्वर्ग, नरक एवं दीर्घायु और अल्पायु प्रदान करने वाले कर्मों का वर्णन | स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन | उत्तम और अधम कुल में जन्म दिलाने वाले कर्मों का वर्णन | मनुष्य को बुद्धिमान, मन्दबुद्धि तथा नपुंसक बनाने वाले कर्मों का वर्णन | राजधर्म का वर्णन | योद्धाओं के धर्म का वर्णन | रणयज्ञ में प्राणोत्सर्ग की महिमा | संक्षेप से राजधर्म का वर्णन | अहिंसा और इन्द्रिय संयम की प्रशंसा | दैव की प्रधानता | त्रिवर्ग का निरूपण | कल्याणकारी आचार-व्यवहार का वर्णन | विविध प्रकार के कर्मफलों का वर्णन | अन्धत्व और पंगुत्व आदि दोषों और रोगों के कारणभूत दुष्कर्मों का वर्णन | उमा-महेश्वर संवाद में महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन | प्राणियों के चार भेदों का निरूपण | पूर्वजन्म की स्मृति का रहस्य | मरकर फिर लौटने में कारण स्वप्नदर्शन | दैव और पुरुषार्थ तथा पुनर्जन्म का विवेचन | यमलोक तथा वहाँ के मार्गों का वर्णन | पापियों की नरकयातनाओं का वर्णन | कर्मानुसार विभिन्न योनियों में पापियों के जन्म का उल्लेख | शुभाशुभ आदि तीन प्रकार के कर्मों का स्वरूप और उनके फल का वर्णन | मद्यसेवन के दोषों का वर्णन | पुण्य के विधान का वर्णन | व्रत धारण करने से शुभ फल की प्राप्ति | शौचाचार का वर्णन | आहार शुद्धि का वर्णन | मांसभक्षण से दोष तथा मांस न खाने से लाभ | गुरुपूजा का महत्त्व | उपवास की विधि | तीर्थस्थान की विधि | सर्वसाधारण द्रव्य के दान से पुण्य | अन्न, सुवर्ण और गौदान का माहात्म्य | भूमिदान के महत्त्व का वर्णन | कन्या और विद्यादान का माहात्म्य | तिल का दान और उसके फल का माहात्म्य | नाना प्रकार के दानों का फल | लौकिक-वैदिक यज्ञ तथा देवताओं की पूजा का निरूपण | श्राद्धविधान आदि का वर्णन | दान के पाँच फल | अशुभदान से भी शुभ फल की प्राप्ति | नाना प्रकार के धर्म और उनके फलों का प्रतिपादन | शुभ और अशुभ गति का निश्चय कराने वाले लक्षणों का वर्णन | मृत्यु के भेद | कर्तव्यपालनपूर्वक शरीरत्याग का महान फल | काम, क्रोध आदि द्वारा देहत्याग करने से नरक की प्राप्ति | मोक्षधर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन | मोक्षसाधक ज्ञान की प्राप्ति का उपाय | मोक्ष की प्राप्ति में वैराग्य की प्रधानता | सांख्यज्ञान का प्रतिपादन | अव्यक्तादि चौबीस तत्त्वों की उत्पत्ति आदि का वर्णन | योगधर्म का प्रतिपादनपूर्वक उसके फल का वर्णन | पाशुपत योग का वर्णन | शिवलिंग-पूजन का माहात्म्य | पार्वती के द्वारा स्त्री-धर्म का वर्णन | वंश परम्परा का कथन और श्रीकृष्ण के माहात्म्य का वर्णन | श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन और भीष्म का युधिष्ठिर को राज्य करने का आदेश | श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् | जपने योग्य मंत्र और सबेरे-शाम कीर्तन करने योग्य देवता | ऋषियों और राजाओं के मंगलमय नामों का कीर्तन-माहात्म्य | गायत्री मंत्र का फल | ब्राह्मणों की महिमा का वर्णन | कार्तवीर्य अर्जुन को वरदान प्राप्ति और उनमें अभिमान की उत्पत्ति का वर्णन | ब्राह्मणों की महिमा विषयक कार्तवीय अर्जुन और वायु देवता का संवाद | वायु द्वारा उदाहरण सहित ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन | ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्य के प्रभाव का वर्णन | ब्रह्मर्षि अगस्त्य और वसिष्ठ के प्रभाव का वर्णन | अत्रि और च्यवन ऋषि के प्रभाव का वर्णन | कप दानवों का स्वर्गलोक पर अधिकार | ब्राह्मणों द्वारा कप दानवों को भस्म करना | भीष्म द्वारा श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन | श्रीकृष्ण का प्रद्युम्न को ब्राह्मणों की महिमा बताना | श्रीकृष्ण द्वारा दुर्वासा के चरित्र का वर्णन करना | श्रीकृष्ण द्वारा भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन | भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन | धर्म के विषय में आगम-प्रमाण की श्रेष्ठता | भीष्म द्वारा धर्माधर्म के फल का वर्णन | साधु-असाधु के लक्षण तथा शिष्टाचार का निरूपण | युधिष्ठिर का विद्या, बल और बुद्धि की अपेक्षा भाग्य की प्रधानता बताना | भीष्म का शुभाशुभ कर्मों को ही सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण बताना | नित्यस्मरणीय देवता, नदी, पर्वत, ऋषि और राजाओं के नाम-कीर्तन का माहात्म्य | भीष्म की अनुमति से युधिष्ठिर का सपरिवार हस्तिनापुर प्रस्थान
भीष्मस्वर्गारोहण पर्व
भीष्म के अन्त्येष्टि संस्कार की सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदि का आगमन | भीष्म का धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर को कर्तव्य का उपदेश देना | भीष्म का श्रीकृष्ण आदि से देहत्याग की अनुमति लेना | भीष्म का प्राणत्याग | धृतराष्ट्र द्वारा भीष्म का दाह संस्कार | गंगा का भीष्म के लिए शोक प्रकट करना और श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः