भागवत सुधा -करपात्री महाराजमहर्षियों के मध्य सूत जी सुखासीन थे। उनसे उन्होंने पूछा- त्वया खलु पुराणनि सेतिहासानि चानघ। हे सूत जी! तुमने भगवान व्यास से पद्य, स्कन्द आदि पुराणों का अध्ययन किया है। रामायण, महाभारत आदि सम्पूर्ण इतिहासों का अध्ययन किया है। परावरविद योगीन्द्र, मुनीन्द्र, अमलात्मा परमहंसगण जिस तत्त्व को जानते हैं, उस तत्त्व को आप भलीभाँति जानते हैं। भगवान वेदव्यास के अनुग्रह से आप इन सब तत्त्वों को जान पाये हैं। हम आपसे गुह्य रहस्य जानना चाहते हैं। जो भक्त और स्नहेवान शिष्य है उसके लिए गुरुजन गुप्त-से-गुप्त वस्तु का भी वर्णन करते हैं। हम आप से पूछते हैं- दुःखनिवृत्ति का ऐकान्तिक उपाय क्या है? निश्चित उपाय को ऐकान्तिक उपाय कहते हैं। खेती आदि ऐसे कई उपाय होते हैं जो उपद्रवग्रस्त हो जाते हैं, विफल हो जाते हैं। साथ ही एकबार रोगनिवृत्त होकर भी फिर हो जाता है। रोगनिवृत्ति के लिए इलाज किया, रोग निवृत्त हो गया; कालान्तर में फिर हो गया। इस तरह रोग की आत्यन्तिक निवृत्ति नहीं हुई। इसलिए दुःख निवृत्ति का ऐकान्तिक और आत्यन्तिक साधन जो आपने निश्चित किया है, वह कृपा कर कहिये। आज का मनुष्य अल्पायु है। कलियुग में ज्यादा-से-ज्यादा सौ वर्ष आयु। उसमें भी आधी तो सोने में चली जाती है। अनेक प्रकार की बालक्रीडा और विविध प्रकार के उपद्रवों में आधी आयु बीत जाती है। लोग मन्द हैं, समुन्द मति हैं। अल्पभाग्य हैं। भाग्य भी साथ नहीं देता। अतः साओअत्र यत्सारं समुद्धृत्य मनीषया। ब्हुत कुछ सुनना है संसार में। सुनने लगें तो अन्त नहीं। श्रोतव्य क्या है, कितना है? अतः पुराणों में, वेदों में, आगमों में जो सारतम तत्त्व है, वह कृपा करके उपदेश करे; हमें बताएँ। हम लोग श्रद्धालु हैं। आपसे प्रश्न कर रहे हैं। जिससे अन्तरात्मा-अन्तःकरण प्रसन्न हो जाय, निर्मल-निष्कलंक हो जाय, रजोगुण- तमोगुण से रहित हो जाय, भगवत्पदप्राप्ति का अधिकारी हो जाय, वह सब बताओ। भूरीणि भूरिकर्मांणि श्रोतव्यानि विभागशः। घोर संसार में आया हुआ प्राणी जिसका नाम स्मरण करके मुक्त हो जाता है। विवशतावश भी जिनका नाम आ जाय तो सारे अनर्थ दुःख परम्परा से विमुक्त हो जाता है। जिस भगवान से भय स्वयं डरता है। ऐसे भगवान काल-काल महाकाल हैं। उनके पादारविन्द की उपासना के अमोघ प्रभाव से महामुनीन्द्र अनन्तशक्ति सम्पन्न हो जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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