भागवत सुधा -करपात्री महाराज पृ. 34

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भागवत सुधा -करपात्री महाराज

प्रकाशकीय

परमपूज्य धर्मसम्राट् परमब्रह्मस्वरूप अनन्तश्री विभूषित स्वामी करपात्री जी महाराज द्वारा प्रणीत परम पावन ग्रन्थ ‘भागवत सुधा’’ सहृदय, भक्त, रसिक एवं भगवच्चरणानुरागी भक्तों को सौंपते हुये हमें अत्यन्त हर्षानुभूति हो रही है। परमपूज्य श्रीचरणों का अलौकिक व्यक्तित्व आज भी अपने यशःशरीर से अस्तिवादी (आस्तिक) भक्तों के हृदय को अनुप्राणित कर रहा है। जिन लोगों को उनके श्रीमुख से भागवत की कथा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, वे ही उस परमपुनीत वाणी की दिव्यानुभूति का, रसास्वाद का आनन्द समझ सकते हैं। हमारे परिवार पर उनकी सदैव से अनुकम्पा रही है और हमें सदैव उस वाणी को सुनने का सुअवसर अपने अनेक जन्मों के संचित पुण्यों के परिणामस्वरूप प्राप्त होता आया है। पहले हम लोग अपने कलकत्ता के निवास स्थान पर आठ दस दिनों तक भक्ति ज्ञान विषयक प्रवचन करने के लिये उनसे प्रार्थना करते थे और वे प्रति वर्ष अत्यन्त कृपा कर स्वीकार करते थे और हम लोगों को प्रवचन की पीयूष धारा में निमज्जित कर देते थे। अनेक सालोें तक कलकत्ता में जनता को उनकी वाणी सुन कर अपने मन-क्रम-वचन-व्यवहार को पवित्र करने का अवसर मिलता था। धीरे-धीरे कलकत्ता की अत्यन्त व्यस्त नगरी से उनका मन ऊबने लगा, फलतः आनन्दकन्द ब्रजेन्द्रनन्दन भगवान श्री कृष्णचन्द्र के नित्यलीला धाम में प्रवचन करने की प्रार्थना जब हम लोगों ने की तो उन्होंने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक इसे स्वीकार कर लिया।
प्रति वर्ष फाल्गुन मास में होली के अवसर पर यह कार्यक्रम चलता था, जो लगभग दस वर्षों तक चला। इन प्रवचनों में श्रीमद्भागवत के ‘वेणु गीत’ एवं ‘रास पंचाध्यायी’ प्रसंगों पर प्रवचन हेाता था। लगभग दो वर्षों तक अनेक सत्संगियों के अनुरोध पर ‘श्री राधासुधानिधि’ पर प्रवचन हुआ। उसका आनन्द अलौकिक था। राधा-नागरि की सजीव आभा-प्रभा में भक्त एवं श्रोता सुध-बुध खोकर लबलीन हो जाया करते थे। इन प्रवचनों का टेप भी हुआ और हम उन्हें पुस्तकाकार में प्रकाशित करना चाहते थे, परन्तु दैवयोग से वह कार्य नहीं हो सका। पुनः सबकी इच्छा सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पर पूज्य चरणों का प्रवचन सुनने की थी। हमने इस आशय की प्रार्थना उनसे की और उन्होंने कृपा पर श्रीमद्भागवत पर प्रवचन करना स्वीकार किया। फलतः श्री धर्मसंघ महाविद्यालय रमणरेती वृन्दावन में 17.3.81 से 24.3.81 तक परमपूज्य चरणों ने श्रीमद्भागवत पर प्रवचन किया। वह प्रवचन वृन्दावन की रसिक कथाओं के इतिहास में अपना अनन्य स्थान रखता है। इसे टेपवद्ध किया गया था और इसे पुस्तकाकार रूप देने का निर्णय पूज्य चरणों के सम्मुख ही किया गया था।

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संबंधित लेख

भागवत सुधा -करपात्री महाराज
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
प्रथम-पुष्प
1. निगमकल्परोर्गलितं फलम् 37
2. पुरुषार्थचतुष्टयप्रदायक निगमकल्पतरु 38
3. रसमालयम् 38
4. आत्माराम का भी भगवद्गुणगणार्णव में अवगाहन 38
5. देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत: 39
6. युगधर्मों का निरूपण 42
7. विद्या-अविद्या का समुच्चय 44
8. भगवन्नाम-संकीर्तन 48
9. माहात्म्य 51
10. वस्तु-तत्व के साक्षात्कार के लिए श्रवण, मनन और निदिध्यासन अपेक्षित 54
11. ‘जन्माद्यस्य यतोऽन्वयात्’ की भूमिका 54
12. भगवत्तत्व का अनुसंधान- छान्दोग्य शैली में 55
13. भगवतत्व का अनुसंधान -तैत्तिरीय शैली में 56
14. पैंगलोपनिषत् पुराण और महाभारत की शैली में 56
15. परब्रह्म के निःश्वासभूत वेदों की अपौरुषैयता 57
16. वेदों के प्रतिपाद्य सगुण या निर्गुण 59
17. ईश्वर-सिद्धि 64
18. नास्तिकों के भी उद्धार का उपक्रम 64
19. सर्वात्मभाव 68
20. भगवान् जगत के अभिन्ननिमित्तोपादानकारण 70
द्वितीय-पुष्प
1. ‘जन्माद्यस्य यतः’ 71
2. 'अन्वयत्', 'इतरत:', 'च' 72
3. 'अभिज्ञः' 74
4. ‘स्वराट्’ 74
5. ‘तेने ब्रह्महृदा य आदि कवये मुह्यन्ति यत् सूरयः’ 75
6. ‘तेजोवारिमृदां यथा विनिमय: 76
7. ऋषि-सूत-संवाद 78
8. श्रीशुक-वन्दना 82
9. शुकमनमोहक ‘बर्हापीडं’ श्लोक 85
10. 'बर्हापीडं' 87
11. ‘नटवर- वपुः’ 88
12. ‘कर्णयोः कर्णिकारं’ 90
13. ‘विभ्रद्वासः कनककपिशं’ 91
14. ‘रन्ध्रान्वेणोरधरसुधया पूरयन्’ 92
15. ‘वृन्दारण्यं स्वपदरमणं’ 94
16. अकारणकरुण करुणावरुणालय-‘भगवान्’ 95
तृतीय-पुष्प
1. प्रतिपद्य और प्रतिपादक की परब्रह्मरूपता 99
2. परम धर्म 111
3. मोक्ष पर्यवसायी धर्म, अर्थ और काम 118
4. ‘तत्त्व’ की तात्त्विक परिभाषा 123
चतुर्थ-पुष्प
1. भगवान व्यास को देवर्षि नारद की प्रेरणा 127
2. गुणगण भगवान् के उपकारक नहीं 139
3. भगवदाराधन की विधि 143
4. ‘तथा परमहंसानां’ के साथ ‘परित्राणाय साधूनां’ की संगति 154
पंचम-पुष्प
1. शुक-समागम 159
2. अप्रमत्त के लिये अति सुगम भगवत्प्राप्ति 174
3. नाम-धाम-प्राणायाम और ध्यान से भगवत्प्राप्ति 175
4. ‘तेषां के योगवित्तमाः’ का समाधान 183
5. ‘न किश्चिदपि चिन्तयेत्’ का तात्त्विक अभिप्राय 188
षष्ठ-पुष्प
1. ब्रह्म-नारद संवाद 190
2. माया संतरण का अमोघ उपाय 191
3. प्रह्लाद चरित 196
4. शरणागति 205
5. शरण्य की शरणागति 208
6. शरण्य का स्वरूप 208
7. शरणागति एक बार या बार-बार? 208/2
8. श्री जी 209
सप्तम-पुष्प
1. राजा बलि के पूर्व जन्म का वृतान्त 216
2. भगवान वामन को आविर्भाव 223
3. राजा बलि की सत्यनिष्ठा 228
4. धर्मनिरपेक्ष या धर्मसापेक्ष? 228
5. धन बड़ा या धनवान ? 230
6. ‘धन नहीं धनवान् बड़ा’ 231
अष्टम-पुष्प
1. वेदान्तवेद्य पूर्णतम पुरुषोत्तम ‘श्रीराम’ 233
2. ‘आदि कर्ता स्वयं प्रभु’ श्रीराम 235
3. लताओं तक को प्रेम प्रदान करने वाले ‘श्रीराम’ 236
4. प्रभुओं के भी प्रभु ‘श्रीराम’ 238
5. धर्म रक्षक ‘श्रीराम’ 239
6. लीला पुरुषोत्तम ‘श्रीकृष्ण’ 239
7. श्रीवृन्दावन, गोपांगनाएँ; श्रीकृष्ण और राधा का तात्विक स्वरूप 240
8. श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द का अद्भुत प्राकट्य 242
9. सुषमासारसर्वस्त्र ‘श्रोहरि’ 242
10. अनाघ्रात अनपहत-अनुत्पन्न-अनुपहत और अदृष्टाद्भुत पंकज ‘श्रीकृष्ण’ 242
11. सत्यज्ञानानन्तान्दमात्रैकरसमूर्ति ‘श्रीकृष्ण’ 242/2
12. भगवान् के जन्म और कर्म दिव्य हैं, वे स्वयं अप्राकृत हैं 244
13. श्री वृन्दावनधाम 248
14. मृद्भक्षण लीला 250
15. दामोदरलीला 251
16. निराकार से साकार 252
17. भावुक के दु्रत चित्त पर भगवान् की अभिव्यक्ति ‘भक्ति’ 254
18. श्रीकृष्णचन्द्र और श्रीराधाचन्द्र 255
19. आसन और आशयरूप बाह्यप्रपच्च और पंचकोश के तादात्म्य का त्यागकर श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्द कन्द के स्वागत में तन्मय द्वारकास्थ पट्टमहिषीगण 257
20. कथा श्रवण से वैराग्य एवं विज्ञानोपलब्धि 258
21. भगवद्गुणानुवाद से भगवद्भक्ति 259
22. अंतिम पृष्ठ 259

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