विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजसप्तम-पुरुष 1. राजा बलि के पूर्व जन्म का वृतान्तइन्द्र प्रायः त्यागी नहीं होते। पाणिनि ने श्वन्[1],युवन्[2] और मघवन्[3] इन अन्नन्त शब्दों को एक जोडे़ में जोड़ा- श्व[4] युवमघोनामतद्धिते [5][6] तुलसीदास जी ने भी उसका उल्लेख किया है- लखि हियँ हँसि कह कृपानिधानू। सरिस श्वान् मघवान जुबानू।।[7] पकरिपु[11] की रीति-नीति कौए और कुत्ते के समान है। कुटिल काक के समान ही तो वह सबसे डरता है। श्वान के समान उसकी नीति और करतूत है। महर्षि तप करने लगते हैं तो इन्द्र सोचने लगता है ‘हमारा सिंहासन तो कहीं नहीं ले लेंगे?’ श्वान सूखी हड्डी चबा रहा हो तो सिंह को आते देख हड्डी लेकर भागता है, उसे डर लगता है कि कहीं यह सिंह हमारी सूखी हड्डी न छींन ले। वह समझता नहीं कि सिंह तो स्वयं जो शिकार खेलता है, उसी को ग्रहण करता है, मरा हुआ शिकार भी नहीं लेता तो सूखी हड्डी काहेको क्यों लेगा? नर-नारायण भगवान तप कर रहे थे। इन्द्र ने भेजा अपने गणों को। अप्सरायें गयीं भगवान नर-नारायण को ठगने के लिये। भगवान नर-नारायण ने उन सबका स्वागत किया। अर्ध्य, पाद्य? मधुपर्कादि से विधिवत नर-नारायण ने काम सहित अप्सराओं का पूजन किया। फिर कहा- ‘अब आप लोग कुछ माँगें, हम आपको दें। वे पानी-पानी हो गये। अप्सराओं ने कहा- ‘भगवन। क्या माँगें? जैसा सद्योजात बालिका अपने हावभाव कटाक्षों से अपने नब्बे वर्ष के बाबा, परबाबा को मोहित करना चाहे तो उसकी मूर्खता ही है; ऐसे ही आप सर्वेश्वर सर्वान्तरात्मा सर्वद्रष्टा हैं, आप सबके माता-पिता हैं हम आपको मोहने आयी हैं, ठगने।’ कामं दहन्ति कृतिनो ननु रोष्दृष्ट्या कुछ महानुभाव अपनी क्रोध भरी दृष्टि से काम को जला देते हैं, परन्तु अपने आपको जलाने वाले असह्य क्रोध को वे नहीं जला पाते। वही क्रोध नर-नारायण के निर्मल हृदय में प्रवेश करने के पहले ही भय के मारे काँप जाता है। फिर भला उनके हृदय में काम का प्रवेश तो हो ही कैसे सकता है?) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कुत्ता
- ↑ युवा=जवान
- ↑ इन्द्र
- ↑ इस सूत्र के सम्बन्ध में उक्ति-प्रत्युक्ति रूप में एक रोचक सूक्ति प्रसिद्ध है, पूर्वाध में प्रश्न है आप उत्तरार्ध में उत्तर।
काचं मणि काश्चनमेकसूत्रे ग्रथ्नासि बाले किमिदं विचित्रम्।
विचारवान् पाणिनिरेकसूत्रे श्वानं युवानं मघवानमाह।।
अर्थ- माला गूँथती बाला से यह प्रश्न किया गया- ‘तुम काँच, मणि और सोन को एक सूत्र में क्यों गूँथ रही हो। यह क्या गजब कर रही हो।’ उसने उत्तर दिया- ‘विचारवान् पाणिनि मुनि ने भी तो एक सूत्र में कुत्ते, युवा और इन्द्र को कहा है- घसीट मारा है। ‘अर्थात् जब बुद्धिमान् पाणिनि जैसे लोग भी असमान वस्तुओं को एक स्थान में (बैठाते हैं तो मैं तो बाला अज्ञान) ऐसा करूँ, इसमें भला आश्चर्य की कौन-सी बात है?’ - ↑ 6.4.133
- ↑ सम्प्रसारण विधि सूत्र
- ↑ रामचरितमानस 2.301.8
- ↑ रामचरितमानस 2.301.2
- ↑ रामचरितमानस 1.124.8
- ↑ रामचरितमानस 1.125
- ↑ इन्द्र
- ↑ भागवते 2.7.7
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