भागवत सुधा -करपात्री महाराज‘निर्गुण ब्रह्म भगवान का धाम है’ ऐसा मानने वालों का यह आग्रह होता है कि धाम का अर्थ निवास स्थान ही होता है। परन्तु ‘परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्’[1] ज्ञानमेकं पराचीनैरिन्द्रियै ब्रँह्म निर्गुणम्। (एक अद्वितीय नित्य बोध ही भ्रान्त जनों को अविद्या-प्रत्युपस्थापित बहिर्मुख इन्द्रियों तथा मन-बुद्धि आदि द्वारा शब्दादिधर्मक प्रपंच रूप से भासित होता है।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज