भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
वासुदेव गोकुल गये
किसी प्रकार लगभग आधी रात तक पलकें झपकाते जागे। अब तनिक नेत्र बन्द हो गये तो उनका दोष? वे सबके-सब द्वार के दोनों ओर बैठे-बैठे लुढ़क गये थे। मथुरा में कोई जाग नहीं रहा था। केवल द्वार-रक्षक ही नहीं सोये थे इस समय। सो तो गये थे इस वर्षा में नगर के श्वान तक इधर-उधर दुबककर। केवल कंस जाग रहा था आज अपने कक्ष में; किन्तु उसकी बात फिर। उसके सब अनुगत सो गये थे और सात्विक जनों को भी मध्य–रात्रि के पश्चात निद्रा तो आती ही है। ‘देव! मेरे और आपके आराध्य भी आ रहे हैं! आप स्वागत करने नहीं चलेंगे?’ योगमाया को भगवान अनन्त को कहीं ढूंढ़ने तो जाना नहीं था। वे तो उसी नन्द–सदन में अपने पलने में पड़े थे समीप ही– ‘वर्षा-वायु को इस समय वारित करना उचित नहीं होगा। ‘यह सेवा तुम मुझे करने दो।’ अनन्त प्रभु जानते हैं कि योगमाया के लिए अदृश्य छत्र बने रहना कोई समस्या नहीं है। वसुदेव जी कारागार-द्वार से निकले। उन्हें तो एक ही विचार व्याकुल किये है– ‘कंस आता होगा! उनका सर्वस्व किसी प्रकार गोकुल सुरक्षित पहुँच जाय।’ वसुदेवजी नहीं देख सके कि कारागार-रक्षक हैं भी या नहीं। आकाश में मेघ उमड़-घुमड़ रहे हैं, यह कौन देखता। उन्हें तो अपने चारों ओर होती मूसलाधार वृष्टि नहीं दीख रही है। सन-सन करती वायु का पता नहीं। पल-पल होती तड़ातड़ बिजली की गर्जना सुनायी नहीं पड़ती। लगभग घुटनों तक जल में वे छपाछप चले जा रहे हैं, यह भी पता नहीं उन्हें। भगवान अनन्त अपने सहस्त्र फणों को उठाये वसुदेव जी के मस्तक पर फणों का छत्र लगाये उनके पीछे उसी गति से चल रहे हैं। वसुदेव जी के ऊपर एक सीकर पड़ जाये इस समय, यह भला कैसे सम्भव है। उन सर्वेश्वर शेष का स्मरण तो महामाया की विपत्ति-वर्षा से प्राणी को त्राण दे देता है और इस समय तो वे अत्यन्त सावधान अपने स्वामी की सेवा में उनके श्रीमुख का दर्शन करते चल रहे हैं। यमुना यमराज की सगी बहिन है, यह उनका पावस में बढ़ा रूप देखकर सहज समझ में आता है। प्रबलधारा, भयानक शतश: आवर्त, उच्छलित तरंगें, बहते तृण-तरु-फेनराशि। दोनों तटों को ढहाती बहने वाली उनकी उग्र धारा और इस समय की प्रबल वर्षा ने उस धारा को अत्यधिक उग्र कर दिया है–बढ़ा दिया है। लेकिन भगवान रमाकान्त जब गरुड़ पर बैठ समुद्र में अपने सौध पधारते हैं, उदधि अपने जामाता को मार्ग देने में कभी प्रमाद करता है? वह नवजलधर सुन्दर–न सही गरुड़ारूढ़, वसुदेव के सिर पर सही, न सही चतुर्भुज युवा, द्विभुज शिशु रूप सही–यमुना अपने स्वामी को ही नहीं पहचानेंगी? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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