भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
व्रजपति-मिलन
कंस की चर्चा आते ही वसुदेव जी चौंके। वे यहाँ आकर भूल ही गये थे कि अभी सवेरे ही पूतना के गोकुल की ओर जाने का समाचार मिला है। ये व्रजपति तो प्रधान गोपों को भी लेकर यहाँ मथुरा चले आये हैं, और वह मायाविनी वहाँ पहुँची होगी। ‘आपने महाराज को वार्षिक कर दे दिया और मुझे आपके दर्शन भी हो गये।’ वसुदेव जी ने स्थिर गम्भीर स्वर में कहा– ‘अब आपको यहाँ अधिक देर नहीं रुकना चाहिये; क्योंकि गोकुल में उत्पात होने की आशंका है।’ ‘गोकुल में उत्पात हो सकता है!’ गोपों ने सुना तो एक साथ उठ खड़े हुए। गोप जाति एकमत, त्वरित कर्मरत होने वाली है। गोप किसी पर अकारण अविश्वास नहीं करते। कारण पूछने का अभ्यास उन्हें प्राय: नहीं होता। ‘ये दाहिने-बायें उड़ते पक्षी आपको शीघ्र चल देने का संकेत कर रहे हैं।’ वसुदेव जी ने आकाश की ओर संकेत किया और नन्दराय भी उठकर खड़े हो गये। गोपी ने बैल हाँके और उन्हें छकड़ों में जोता। जो भी वस्त्र, भाण्ड भूमि पर थे, उठाकर छकड़ों में रखा। ‘श्रीहरि की कृपा हुई तो फिर मिलेंगे।’ व्रजपति ने भुजा फैलाकर अंकमाल दी वसुदेव जी को। गोपों ने भी यथायोग्य अभिवादन किया और व्रजेन्द्र छकड़े पर जा बैठे। वसुदेव जी ने विदा किया उस समूह को। वे वहीं खड़े-खड़े जाते हुए छकड़ों को तब तक देखते रहे, जब तक उनकी ध्वनि सुनायी पड़ती रही। फिर वे अपने रथ की ओर मुड़े। ‘भगवान नारायण रक्षा करें।’ जाते हुए व्रजराज तथा वसुदेव जी ने भी सोचा था। गोकुल दूर नहीं था, सांय से पूर्व ही व्रजराज को अपने यहाँ पहुँच जाना था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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