विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजसप्तम-पुरुष 2. भगवान वामन को आविर्भावराजा बलि ने बड़ा सम्मान-सत्कार किया। पूजन करके कहा- ‘ब्रह्मन्, विप्रदेव! आज्ञा दीजिए। आप आज्ञा दीजिये, क्या सेवा करें, आप जो भी कहेंगे, वही सेवा करेंगे, भगवान ने बड़ी प्रशंसा की- ‘‘राजन! आपका यह खानदान बड़ा पुराना है। यह दीनदान, सदाचारी-सच्चरित्र रहा है। राजा विरोचन के पास देवताओं ने आकर आयु माँगी। यह जानते हुए कि ये हमारे दुश्मन हैं, उन्हें उन्होंने आयु दे दी। तुम्हारे पूर्वज हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु का क्या कहना?’’ आदि-आदि प्रशंसाओं के पुल बाँध दिये। राजा बलि प्रसन्न हुआ। बोला- ‘महाराज ठीक है। आप जो कुछ कह रहे, सब ठीक है। अब आप आज्ञा तो दो।!’ भगवान वामन ने कहा- ‘कुछ नहीं सिर्फ तीन पग धरती चाहिये।’ राजा बलि ने कहा- ‘तुम बडे़ बुद्धिमान हो, पर स्वार्थ के प्रति अबुध हो। प्रशंसा के पुल बाँध दिये, फिर भी मुझसे माँगा भी तो केवल तीन पंग भूमि? अरे, हम से द्वीप माँग लो, तीन लोक माँग लो।’ अहो ब्रह्माणदायाद वाचस्ते बृद्धसम्मताः। राजा बलि ने कहा- ब्राह्मण कुमार! तुम्हारी बातें तो बुद्धों-जैसी हैं, परन्तु तुम्हारी बुद्धि अभी बच्चों की-सी ही है। अभी तुम हो भी तो बालक हो न, इसी से अपना हाँनि-लाभ नहीं समझ रहे हो? मैं तीनों लोकों का एकमात्र अधिपति हूँ और द्वीप-का-द्वीप दे सकता हूँ। जो मुझे वाणी से प्रसन्न कर ले और मुझसे केवल तीन पग भूमि माँगे- वह भी क्या बुद्धिमान कहा जा सकता है? ब्रह्मचारी जी! जो एक बार कुछ माँगने के लिये मेरे पास आ गया, उसे फिर कभी किसी से कुछ माँगने की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए, अतः अपनी जीविका चलाने के लिये तुम्हें जितनी भूमि आवश्यक हो, उतनी मुझसे मांग लो।।) भगवान् ने कहा-‘असन्तुष्टा द्विजा नष्टाः सन्तुष्टाश्च महीभुजः’[2] ‘राजन! जिस ब्राह्मण में सन्तोष नहीं है, वह नष्ट हो जाता है। सन्तुष्ट महीपति निन्दनीय है और असन्तुष्ट ब्राह्मण। अगर हम तीन पग धरती से सन्तुष्ट नहीं होंगे तो अनन्त धन-धान्य से भी, त्रैलोक्य पाने से भी सन्तुष्ट नहीं होंगे और सन्तुष्ट होंगे तो इसी से सन्तुष्ट होंगे। शुक्राचार्य महाराज सब सुन रहे थे। सोच रहे थे यह क्या तमाशा है? तब तक यज्ञ के पूर्व द्वार पर ऋग्वेदी ब्राह्मण बोल पड़ा- ‘इदं विष्णुविचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्’ समूढमस्य पांसुर।।[3] विष्णु कहते हैं व्यापन शील की। उस व्यापनशील परमात्मा-विष्णु ने सारे विश्व प्रपंच को तीन पग मं आक्रान्त कर दिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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