विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 21. भगवद्गुणानुवाद से भगवद्भक्तियस्तूत्तमश्लोकगुणानुवादः भगवान श्रीकृष्ण का गुणानुवाद समस्त अमंगलों का नाश करने वाला है, बड़े-बडे़ महात्मा उसी का गान करते हैं। जो भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अनन्य प्रेममयी भक्ति की लालसा रखता है, उसे नित्य, निरन्तर भगवान के दिव्य गुणानुवाद का ही श्रवण करते रहना चाहिये। श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द में अमला भक्ति की इच्छा हो तो भगवान के दिव्य गुणों का, चरिताम्त का, नामामृत का अखण्ड रूप से पान करो। यही श्रीमद्भागवत का ध्येय है। यह सब साधुसंग-वैष्णव संग से संभव है। जितना-जितना साधुसंग का रसास्वादन करोगे, उतना-उतना भगवत्स्वरूप-भगवन्नामामृत-भगवच्चरित्रामृत और भगवद्गुणगणार्णव का अवगाहन होगा, रस का आविर्भाव होगा। नामसंकीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम्। जिस भगवान के नाम का संकीर्तन सम्पूर्ण पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है और जिन भगवान के चरणों में आत्मसमर्पण, उनके चरणों में प्रणाम सर्वदा के लिये सब प्रकार के दुःखों को शान्त कर देता है, उन्हीं परमतत्त्वस्वरूप श्रीहरि को मैं नमस्कार करता हूँ।। श्रीराम, जय राम, जय जय राम
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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