विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
20. मणिस्तम्भ-लीला
(प्रथम नवनीत हरण-लीला)
जिस माया से मोहित होकर जगत के मूढ़ प्राणी ‘मैं- मेरे’ का प्रलाप कर रहे हैं, वही माया जिनके दृष्टिपथ में ठहर भी नहीं पाती, लज्जित होकर भाग खड़ी होती है-
उनका मणिस्तम्भ में अपना प्रतिबिम्ब देखकर भ्रमित हो जाना कितना मोहक है! ओह! जिन विराट के कटि से ऊपर के भाग में भूलोक, नाभि में भुवर्लोक, हृदय में स्वर्लोक, वक्षःस्थल में महर्लोक, ग्रीवा में जनलोक, स्तनों में तपोलोक एवं मस्तक में सत्यलोक की कल्पना है, कटिदेश में अतल, ऊरुओं में वितल, जानुओं में सुतल, जंघाओं में तलातल, गुल्फों में महातल, एड़ियों में रसातल एवं पादतल में पाताल कल्पित है; जिन विराट के मुख से वाणी एवं अग्नि उत्पन्न हुए; गायत्री, त्रिष्टुप, अनुष्टुप, उष्णिक, बृहती, पंक्ति एवं जगती-ये सात छन्द जिनकी सात धातुओं से निर्गत हुए; हव्य, कव्य, अमृतमय अन्न, समस्त रस, रसनेन्द्रिय एवं वरुण जिनकी जिह्वा से निस्सृत हुए; पंचप्राण एवं वायु जिनके नासाछिद्रों से उद्भूत हुए; अश्विनीकुमार, ओषधिसमुदाय, मोद (साधारण गन्ध), प्रमोद (विशेष गन्ध) जिन विराट की घ्राणेन्द्रिय से उत्पन्न हुए; रूप एवं तेज जिनके नेत्रेन्द्रिय से निकले; सूर्य एवं स्वर्ग जिनके नेत्रगोलक से प्रकट हुए; समस्त दिशाएँ, समस्त तीर्थ जिनके कर्णयुगल से व्यक्त हुए, आकाश एवं शब्द जिनके श्रोत्रेन्द्रिय से निकले; जिन विराट का शरीर संस्थान समस्त वस्तुओं का सारस्वरूप एवं समस्त सौन्दर्य का भाजन है; जिनकी त्वचा से सारे यज्ञ, स्पर्श एवं वायु निकले; जिनके रोम से यज्ञ के उपकरणभूत समस्त उद्भूत हुए है जिनके केश, श्मश्रु (दाढ़ी-मूँछ) एवं नखों से मेघ, विद्युत, शिला, लोह प्रकट हुए; जिनकी भुजाओं से रक्षक लोकपाल आविर्भूत हुए; जिनका पदसंचालन भूः, भुवः, स्वः-त्रिकोग का निर्माण कर देता है; जिनके शंतम-भयहारी चरण कमल अप्राप्त की प्राप्ति एवं प्राप्त की रक्षा कर देते हैं, समस्त कामनाओं की पूर्ति कर देते हैं; जो विराट जल, वीर्य, सर्ग, पर्जन्य, प्रजापति, कामसुख, यम, मित्र, मलत्याग, हिंसा, निर्ऋति, मृत्यु, निरय के उद्गम हैं; जिनके पृष्ठदेश से पराजय, अधर्म, अज्ञान उद्भूत हुए; जिनकी नाड़ियों से नद-नदी-समूह का निर्माण हुआ; जिनके अस्थि संस्थान से पर्वत श्रेणियाँ निर्मित हुईं; जिनके उदर में मूलप्रकृति रस नामक धातु, समुद्र, समस्त प्राणी-समुदाय, प्राणियों का निधन समाया हुआ है |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 2।5।13)
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज